इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल जिले में दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार 73 वर्षीय मोहम्मद उस्मान के मकान को ध्वस्त करने की जिला प्रशासन की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। अदालत ने प्रशासन, पुलिस और नगरपालिका को फटकार लगाते हुए कहा कि “कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना इस तरह की कार्रवाई करना संविधान और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
गौरतलब है कि मोहम्मद उस्मान पर एक 12 वर्षीय बच्ची के साथ कथित दुष्कर्म का आरोप है। उनकी गिरफ्तारी के बाद नैनीताल में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं भी सामने आईं, और एक 200 साल पुरानी मस्जिद को भी नुकसान पहुंचाया गया।
तीन दिन में मकान गिराने का नोटिस
इन्हीं घटनाओं के बीच नगर पालिका ने उस्मान के मकान को अवैध निर्माण बताते हुए तीन दिन में ध्वस्तीकरण का नोटिस जारी कर दिया। इस पर उनकी पत्नी हुसैन बेगम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि उस्मान परिवार बीते 20 वर्षों से इस मकान में रह रहा है और आज तक किसी प्रकार का नोटिस नहीं मिला था।
हाईकोर्ट की सख़्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि “सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि इस प्रकार की किसी भी कार्रवाई से पहले कम से कम 15 दिन का समय देना अनिवार्य है।” तीन दिन में मकान तोड़ने का नोटिस देना न्याय के साथ मज़ाक है। अदालत ने यह भी पूछा कि आखिर इतनी जल्दबाज़ी किसलिए?
सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
मोहम्मद उस्मान के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद जिस प्रकार उनके मकान को गिराने की तैयारी की गई, उस पर मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। कई लोगों का कहना है कि कानून का उपयोग कर के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां किसी आरोपी की गिरफ्तारी के बाद उसके घर पर बुलडोज़र चलाया गया, भले ही वह दोषी साबित न हुआ हो। यह चलन न केवल न्याय प्रक्रिया का उल्लंघन है, बल्कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संविधान की आत्मा के खिलाफ भी है।