राष्ट्रीय झंडा का इतिहास और उसका महत्व…मिस्बाह ज़फ़र छात्र पत्रकारिता विभाग मानू हैदराबाद

झंडा किसी भी मुल्क, सेना, संगठन का एक प्रतीक होता है।दुनिया के लगभग सभी मुल्कों के अपने झंडे हैं।हिंदुस्तान का झंडा जिसको तिरंगा कहते हैं और इसी नाम से जानते हैं। क्योंकि इसमें तीन अलग अलग रंग होते हैं।ऊपर केसरिया, बीच में सफेद रंग जिस पर अशोक चक्र, और नीचे हरा रंग। और उन्हीं तीन रंग से बना तिरंगा झंडा।हिंदुस्तानी झंडे को 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। हिंदुस्तान में ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के नियम बताए गए हैं. इन नियमों को तोड़ने वाले को जेल भी हो सकती है. तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए। तिरंगे का निर्माण हमेशा रेक्टेंगल शेप में ही होगा, जिसका अनुपात 3:2 तय है. वहीं जबकि अशोक चक्र का कोई माप तय नही हैं सिर्फ इसमें 24 तिल्लियां होनी जरूरी है।तिरंगे की तारीख़ शुरुआत से बहस का मौजू रही है कि इसको बनाया किसने है? कुछ लोगों का मानना है इसको पिंगाली वेंकैया ने डिजाइन किया है.. पिछले दिनों ये एक ट्विटर ट्रेंड का हिस्सा भी बना।वहीं अक्सर लोगों का मानना है की सुरैया तय्यब ने डिजाइन किया। ये मुद्दा शुरूआत से ही बहस का एक हिस्सा रहा.1 सितंबर, 1948 को, बॉयज स्काउट एसोसिएशन (इंडिया) ने भारत सरकार के होम सेक्रेटरी को एक लेटर लिखा, जिसमें कहा गया था कि ‘हमारे लड़कों को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास को जानने की जरूरत है, लेकिन ऐसी कोई मजबूत तारीख मौजूद नहीं है। है। अतः आपसे अनुरोध है कि हमें इसके बारे में वह इतिहास बताएं जो हमारे लड़कों को पढ़ाया जा सके।एसोसिएशन के अनुरोध के जवाब में, भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा कि गृह मंत्रालय में राष्ट्रीय ध्वज का कोई मज़बूत इतिहास मौजूद नहीं है। इस बारे में प्रधानमंत्री सचिवालय कुछ बता सकता है। लेकिन प्रधानमंत्री सचिवालय ने कहा कि उन्हें भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से संपर्क किया जा सकता है। इतना ही नहीं, भारत सचिवालय की संविधान सभा भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी। उन्होंने यह भी कहा कि 22 जुलाई 1947 की बैठक में समिति द्वारा डिजाइन का निर्णय लिया गया था। इस जानकारी के अनुसार, इस समिति में डॉ राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सी गोपालाचारी, सरोजिनी नायडू सहित 13 लोगों को शामिल किया गया था। केएम मुंशी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, फ्रैंक एंथोनी, पंडित हीरालाल शास्त्री, बी. पी. सीतारमैया, सरदार बलदेव सिंह, केएम पन्नेकर, सत्यनारायण सिन्हा और एसएन गुप्ता के नाम शामिल हैं।लेकिन एक सच यह भी है कि भारत सरकार या भारतीय इतिहासकारों के पास अपने स्वयं के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास भले ही ना हो लेकिन एडिनबर्ग में रहने वाले युद्ध और साम्राज्य के विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार ट्रेवर रॉयल के अनुसार वर्तमान में भारत में फहराया गया बदरुद्दीन तैय्यबजी द्वारा डिजाइन किया गया था। इसे ट्रेवर रॉयल ने अपनी किताब ‘द लास्ट डेज ऑफ राज’ में लिखा है। उनकी किताब 1989 में प्रकाशित हुई थी। ट्रेवर रॉयल कई दर्जन पुस्तकों के लेखक हैं।यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बदरुद्दीन तैयबजी के दादा का नाम भी बदरुद्दीन तैयबजी था। दादा बदरुद्दीन तैयबजी बंबई उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले पहले भारतीय बैरिस्टर थे और फिर मुख्य न्यायाधीश बनने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने 1867 में बॉम्बे हाईकोर्ट में बैरिस्टर के रूप में अपनी वकालत शुरू की और 1902 में बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। उन्होंने एओ ह्यूम, डब्ल्यूसी बनर्जी और दादाभाई नरोजी के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गांधीजी उन्हें कांग्रेस की स्थापना के पीछे प्रेरक शक्ति मानते थे।सुरैया तैयब जी की 73 साल की बेटी पद्मश्री लीला तैयबजी ने 2018 में ‘द वायर’ में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके पिता बदरुद्दीन तैयबजी ने नेहरू के निर्देश पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक ध्वज समिति का गठन किया था। बदरुद्दीन तैय्यबजी उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आईसीएस अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। लैला तैयब जी का कहना है कि यह उनके उनके थे जिन्होंने न केवल नेहरू को अशोक चक्र का विचार दिया, बल्कि उनकी मां ने झंडे का एक खाका भी बनाया। इस लेख में लैला तैयब जी के लफ़्ज़ों के मुताबिक़, मेरे पिता ने पहली बार राष्ट्रीय ध्वज देखा। इसे मेरी माँ की देखरेख में दिल्ली के कनॉट पैलेस में एडी टेलर्स से सिलवाया गया था।हिंदुस्तान की दीगर तमाम ऐसी चीजें जिनके वजूद पर सवाल उठाया गया फिर चाहे वो तहरीक हो, इमारत हो या मुल्क की शान तिरंगा क्यों न हो..मौजूदा वक्त में नफरती ताकतों का मुद्दा जोर शोर से बनते जा रहे हैं। पिछले दिनों प्रधान मंत्री मोदी के जरिए “आज़ादी के अमृत महोत्सव” के उपलक्ष्य में ‘हर घर तिरंगा’ के ट्विटर ट्रेंड के दौरान तिरंगे की तखलीक का सेहरा पिंगली वेंकैया के सर बांधने की कोशिश की गई।(मिस्बाह ज़फ़र ने ये आर्टिकल कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)

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