इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
कभी प्रतिरोध और न्याय की आवाज़ मानी जाने वाली फैज़ अहमद फैज़ की मशहूर नज़्म “हम देखेंगे” अब देश में राजद्रोह का कारण बन गई है। नागपुर पुलिस ने इस गाने को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रस्तुत करने पर आयोजकों और वक्ता पर राजद्रोह की धारा के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है।
यह मामला 12 मई को नागपुर में हुए एक कार्यक्रम से जुड़ा है, जहां प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और अभिनेता वीरा साथीदार को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में विभिन्न बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं ने भाग लिया। इसी दौरान मंच से फैज़ की नज़्म “हम देखेंगे” पढ़ी गई।
कार्यक्रम के कुछ दिनों बाद नागपुर पुलिस ने आयोजकों पर आरोप लगाया कि इस नज़्म के जरिए “राष्ट्र विरोधी भावनाएं भड़काई गईं” और “सरकारी तंत्र के खिलाफ लोगों को उकसाने” की कोशिश की गई। पुलिस ने राजद्रोह की धाराएं लगाकर एफआईआर दर्ज कर ली है।
इस कार्रवाई को लेकर साहित्य, कला और मानवाधिकार क्षेत्रों में भारी नाराज़गी है। वरिष्ठ लेखक और सामाजिक चिंतक अनुराधा घोष ने कहा, “यह नज़्म दशकों से शोषण के खिलाफ खड़ी होती रही है। अगर आज यह राजद्रोह है, तो कल कबीर और ग़ालिब भी बैन कर दिए जाएंगे।”
फैज़ अहमद फैज़ की यह नज़्म “हम देखेंगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे…” दुनियाभर में अन्याय, तानाशाही और उत्पीड़न के खिलाफ एक सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक रही है। भारत में भी यह कई आंदोलनों में गूंज चुकी है, विशेषकर CAA-NRC विरोध प्रदर्शनों के दौरान।
कानूनविदों का मानना है कि यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर सीधा हमला है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत यादव ने कहा, “एक कविता पढ़ना अगर राजद्रोह है, तो देश में लोकतंत्र की जगह तानाशाही आ चुकी है।”