इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR) में 14.03 करोड़ रुपये के कथित वित्तीय घोटाले का बड़ा खुलासा हुआ है, जिस पर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एडवोकेट शरफुद्दीन अहमद ने एक प्रेस बयान जारी करते हुए कहा कि यह मामला केवल वित्तीय अनियमितताओं का नहीं, बल्कि ऐतिहासिक शोध जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को वैचारिक प्रदूषण से प्रभावित करने की एक गंभीर कोशिश है।
यह खुलासे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ओर से वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 के ऑडिट के दौरान सामने आए हैं, जिसमें ICHR में कुल 18 अलग-अलग वित्तीय गड़बड़ियों की पहचान की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, आरएसएस से जुड़ी संस्था “अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना” (ABISY) से संबंधित लोगों को बिना पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया के ठेके दिए गए, और अधूरे या अस्तित्वहीन प्रोजेक्ट्स के लिए भारी रक़म जारी की गई।
एडवोकेट शरफुद्दीन अहमद ने कहा, “ये घटनाएं दर्शाती हैं कि किस तरह एक स्वायत्त शोध संस्थान को वैचारिक आधार पर राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। जनता के पैसे का इस तरह दुरुपयोग लोकतांत्रिक मूल्यों के मुंह पर करारा तमाचा है।”
CAG रिपोर्ट के अनुसार, दो करोड़ रुपये की रक़म एक सेमिनार सीरीज़ के लिए जारी की गई थी, जो कथित रूप से कभी आयोजित ही नहीं हुई। इसके अलावा, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने ICHR के 15 वर्तमान और पूर्व अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है। इनमें डिप्टी डायरेक्टर सौरभ कुमार मिश्रा, ABISY प्रमुख बालमुकुंद पांडे के भतीजे नरेंद्र शुक्ल और ओम जी उपाध्याय शामिल हैं, जो दोनों ABISY से जुड़े हुए हैं।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने मांग की है कि शिक्षा मंत्रालय इस मामले में तत्काल कार्रवाई करे, CAG की रिपोर्ट और CVC की सिफारिशों को सार्वजनिक किया जाए, और ICHR के संचालन की दोबारा समीक्षा के लिए इतिहासकारों और लेखा विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र समिति गठित की जाए।
पार्टी ने ज़ोर दिया कि शैक्षणिक और शोध संस्थानों में वैचारिक संगठनों से जुड़े व्यक्तियों को निर्णायक पदों से दूर रखा जाए, ताकि शोध की निष्पक्षता बनी रहे और जनधन का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित हो सके।