इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
राजस्थान के जयपुर के गंगापोल क्षेत्र में स्थित एक निर्माणाधीन मस्जिद को जिला प्रशासन और नगर निगम (हेरिटेज विंग) द्वारा शनिवार को सील कर दिया गया। प्रशासन का कहना है कि मस्जिद के निर्माण के लिए न तो स्वामित्व के दस्तावेज उपलब्ध कराए गए थे और न ही निर्माण की वैध अनुमति ली गई थी। वहीं, स्थानीय पार्षद सलमान मंसूरी ने इस कार्रवाई को एकतरफा, गैरकानूनी और सांप्रदायिक मानसिकता से प्रेरित बताया है।
नगर निगम की टीम ने मस्जिद के बाहर नोटिस चस्पा करते हुए 180 दिन के लिए सीलिंग आदेश जारी किया। इस आदेश में कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण बिना अनुमति के किया जा रहा था, इसलिए नियमानुसार इसे रोका गया है। प्रशासन का कहना है कि निर्माण कार्य राजस्थान नगरपालिका अधिनियम के नियमों का उल्लंघन करता है।
वहीं, स्थानीय पार्षद सलमान मंसूरी का कहना है कि यह कोई नया निर्माण नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी मस्जिद का जीर्णोद्धार किया जा रहा था। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद के पास आवश्यक दस्तावेज मौजूद हैं, लेकिन बिना जांच और बिना नोटिस दिए प्रशासन ने धार्मिक स्थल को सील कर दिया, जो कि संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है।
स्थानीय लोगों में नाराज़गी
सीलिंग की खबर फैलते ही बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मस्जिद के बाहर जमा हो गए। मस्जिद कमेटी और मोहल्ले के नागरिकों ने प्रशासन की कार्रवाई के खिलाफ नारेबाज़ी की और मस्जिद को पुनः खोलने की मांग की। विरोध कर रहे लोगों ने इसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं पर हमला बताया।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि प्रशासन ने सिर्फ मस्जिद पर कार्रवाई की, जबकि आसपास अवैध निर्माण के कई उदाहरण हैं, जिन पर कोई कदम नहीं उठाया गया। इससे लोगों में प्रशासन की मंशा को लेकर संदेह पैदा हुआ है।
पार्षद मंसूरी ने बताया कि उन्होंने गंगापोल ज़ोन के डिप्टी कमिश्नर से बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यदि जल्द ही मस्जिद की सीलिंग वापस नहीं ली गई, तो वे क्षेत्रीय जनता के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन करेंगे।
इस घटना ने राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। विपक्षी दलों ने भी इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं और सरकार पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाया है। कई सामाजिक संगठनों ने भी प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
गंगापोल में मस्जिद की सीलिंग अब महज़ एक प्रशासनिक कार्रवाई न रहकर एक संवेदनशील सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है। प्रशासन जहां कानून और नियमों का हवाला दे रहा है, वहीं स्थानीय समुदाय इसे धार्मिक पहचान और अधिकारों के दमन के रूप में देख रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि यह विवाद संवाद और समाधान की ओर बढ़ता है या टकराव की दिशा पकड़ता है।