इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनावों में वामपंथी गठबंधन (आइसा-डीएसएफ) ने तीन प्रमुख केंद्रीय पदों पर जीत दर्ज की है, जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने लगभग नौ साल के बाद संयुक्त सचिव पद पर कब्जा किया है।
केंद्रीय पैनल के परिणाम
अध्यक्ष: नितीश कुमार (आइसा) — 1,702 वोट
उपाध्यक्ष: मनीषा (डीएसएफ) — 1,150 वोट
महासचिव: मुंतेहा फातिमा (डीएसएफ) — 1,520 वोट
संयुक्त सचिव: वैभव मीणा (एबीवीपी) — 1,518 वोट
एबीवीपी के वैभव मीणा ने 85 वोटों के अंतर से आइसा के नरेश कुमार को हराया। यह जीत 2015-16 के बाद एबीवीपी की पहली केंद्रीय पैनल में वापसी है।
काउंसलर सीटों पर एबीवीपी की बढ़त
एबीवीपी ने दावा किया है कि उन्होंने 44 में से 24 काउंसलर सीटें जीती हैं, जो 1999 के बाद से उनकी सबसे बड़ी सफलता है।
इंजीनियरिंग, संस्कृत और इंडिक स्टडीज और सोशल साइंसेज जैसे स्कूलों में एबीवीपी को महत्वपूर्ण बढ़त मिली है।
वामपंथी गठबंधन की प्रतिक्रिया
आइसा-डीएसएफ गठबंधन ने इस जीत को नई शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ छात्रों के जनादेश के रूप में देखा है।
उनका कहना है कि आरएसएस-भाजपा समर्थक शिक्षकों की नियुक्ति और पीएचडी प्रवेश में धांधली के बावजूद छात्रों ने प्रगतिशील राजनीति पर विश्वास जताया है।
एबीवीपी का बयान
एबीवीपी ने अपनी जीत को “जेएनयू के राजनीतिक परिदृश्य में ऐतिहासिक बदलाव” बताया।
नवनिर्वाचित संयुक्त सचिव वैभव मीणा ने इसे “आदिवासी चेतना और राष्ट्रवादी विचारधारा की जीत” करार दिया।
चुनाव प्रक्रिया
चुनाव 25 अप्रैल को आयोजित हुए, जिसमें लगभग 5,500 छात्रों ने मतदान किया, जो कुल मतदाताओं का लगभग 70 प्रतिशत है।
इस बार चुनावों में वामपंथी गुटों में भी फूट दिखी, जहां आइसा और डीएसएफ ने मिलकर चुनाव लड़ा, जबकि एसएफआई,आईएसएएफ,पीएसए ने वापसा के साथ मिलकर अलग से गठबंधन बनाया।
जेएनयू छात्रसंघ चुनावों ने एक बार फिर वामपंथी प्रभाव को बरकरार रखा है, हालांकि एबीवीपी की केंद्रीय पैनल में वापसी और काउंसलर सीटों पर बढ़त ने भविष्य में छात्र राजनीति में नए समीकरणों की संभावना को भी जन्म दिया है।