20 जनवरी को ही दुनिया से विदा हुए थे फ्रंटियर गांधी,पहले गैर-भारतीय जिन्हें मिला भारत रत्न का सम्मान

✍️ अब्दुल-रकीब नोमानी
पॉलिटिकल एडिटर इंसाफ़ टाइम्स

फ्रंटियर गांधी के नाम से प्रसिद्ध खान अब्दुल गफ्फार खान आज के ही दिन 20 जनवरी 1988 को इस दुनिया से विदा हो गए थे। वे पहले गैर-भारतीय थे जिन्हें 1987 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। खान अब्दुल गफ्फार का जन्म 6 फरवरी 1890 को उत्मानजई हश्तनगर (पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित किया। फ्रंटियर गांधी और महात्मा गांधी एक-दूसरे के बेहद करीब थे। जिनके बारे में महात्मा गांधी के पोते राममोहन गाँधी अपनी किताब ”गफ्फार खान : नॉनवाइलेंट बादशाह ऑफ द पख्तूंस में लिखते हैं कि महात्मा गांधी और बादशाह खान शारीरिक भाई भले नहीं थे, लेकिन भाई थे। उनके हथियार थे निडरता और बहादुरी। गाँधीजी ने कभी भी नहीं कहा कि मेरी वज़ह से बादशाह खान कुछ कर रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा कि वो कॉमरेड हैं, मेरे साथी है। बिल्कुल बराबरी का रिश्ता गाँधी के दिल में था। इसका जिक्र राममोहन गाँधी ने अपने किताब में की है। वैसे देखें तो इन्हीं करीबी और इंसानियत के प्रति समर्पण की भाव की वज़ह से गांधी जी ने खान साहब को सरहदी गांधी का खिताब दिया। दोनों ने मिलकर गंगा-जमुनी तहजीब और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया। जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत आज हिंदुस्तान को है। आजकल हर दिन हिन्दू-मुस्लिम के बीच नफरत की खाई और उनके बीच विरोध को बढ़ावा देने की कोशिशें हो रही हैं। हर नए दिन नफरत फैलाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। लोग नफरतों के लो में खुद को जलाए जा रहे हैं। आज हमें फ्रंटियर गांधी के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के लिए समर्पित की और कभी भी हिंदू-मुस्लिम में बैर नहीं किया। सबसे बड़ी बात जिंदगी के आखिरी लम्हों को भी दिलेर और उदारता के साथ जिया। अपने घुटने को किसी के सामने झुकने नहीं दिया।

*खान अब्दुल गफ्फार खान के बारे में देश के महान सपूतों का मत

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 21 अक्टूबर 1946 को पेशावर के पास सयरदारयाब में ख़ुदाई खिदमतगार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि “हमारे खून की कुछ बूँदें हमारे और हमारे नेता खान अब्दुल गफ्फार खान का खून आज मालकंद किले के बाहर बहाया गया। मुझे लगता है कि यह भारत और पठानों दोनों के लिए अच्छा है, क्योंकि वे हमारे भविष्य की समझ के बीज साबित हो सकते हैं। इस हमले में खान अब्दुल गफ्फार खान के बहादुरी प्रयास के वज़ह से ही पंडित जवाहर लाल नेहरू बच सके थे। हमले में नेहरू के सामने खुद आकर बचाया था, जिनके वज़ह से उनके दो उंगली पूरी तरह से फ्रेक्चर हो गया था, वही नाक, खोपड़ी और कंधे में गंभीर चोट आईं थी, फिर बाद में उनको अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था।

वही भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन.. डी. जी तेंदुलकर के किताब में शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए खान अब्दुल गफ्फार खान के बारे में लिखते हैं, मानव-प्रयासों में जो कुछ भी सत् और महान है, बादशाह खाँ जिस नाम से कि खान अब्दुल गफ्फ़ार खाँ प्यार से पुकारे जाते हैं, उसके प्रतीक हैं। जहाँ कि हम लोगों को जो उनकी पीढ़ी के हैं और जो उनके नेतृत्व में काम करनेका सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं, बादशाह खाँ के त्याग और सेवामय जीवन का परिचय प्राप्त है। वहाँ श्री तेन्दुलकर की यह पुस्तक तरुण पीढ़ी और भावी पीढ़ियों के लोगों को इस बात से अवगत करायेगी कि कभी बादशाह खाँ नाम की कोई हस्ती थी। जिसने जिस बात को सही समझा, उसपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया ।

वही भारत के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी जी लिखते हैं कि “सीमांत गांधी वह महान व्यक्ति हैं जो संकीर्ण वर्गवाद और गुटबन्दी- की परिधि से बहुत दूर हैं। शान्ति और मानवता के पुजारी हैं। जीवन के शाश्वत मूल्य का पोषण इनके जीवन का सर्वप्रथम लक्ष्य है। ऐसा व्यक्ति समूची मानव जाति की श्रद्धा का केन्द्र होता है। यदि संसार में किसी को महामानव की संज्ञा दी जा सकती है तो वे हैं खान अब्दुल गफ्फ़ार खाँ, क्योंकि वे संकीर्ण वर्गवाद अथवा गुट बन्दी के पोषक न होकर जीवन के शाश्वत मूल्यों के पोषक हैं जिनका हर युग में महत्त्व रहेगा। वास्तव में बादशाह खाँ सरलता और नैतिक शुद्धता के अवतार हैं और उनमें वे सभी मानवीय गुण विद्यमान हैं, जिन्हें हम श्रेष्ठ मानते हैं।”

*जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जेल में बीता

खान अब्दुल गफ्फार खान के जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जेल में ही बीता। इन्होंने अपने जिंदगी के 42 साल जेल के सलाखों के पीछे बिताए हैं। स्वतंत्रता संग्राम के लड़ाई के वक़्त वर्तमान पाकिस्तान के किसी भी नागरिक के तुलना में खान अब्दुल गफ्फार खान को सबसे ज्यादा समय जेल में ज़िन्दगी गुजरनी पड़ी। खान अब्दुल गफ्फार खान नया मुल्क पाकिस्तान बनने के खिलाफ़ थे। 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद वहाँ पर पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना नहीं छोड़ा। यही वज़ह रही कि आजादी के बाद भी उनको अपने जिंदगी के 9 साल पाकिस्तान के जेल कोठरियों में बितानी पड़ी। लेकिन वो आखिरी साँस तक सच के लिए बोलते और लिखते रहे। पाकिस्तान में बिताए साल उनके जिंदगी के दर्दनाक दौर में से रहे हैं। जिनके बारे में उन्होंने खुद ही जी. डी तेंदुलकर को लिखे पत्र में जिक्र किया है। ये बातें उन्होंने उनके जीवनी लिखे जाने के लिए जो जानकारी माँगी गई थी, उनपर लिखी थी वो लिखते हैं पाकिस्तान में मैंने जो जीवन बिताया है, यदि आप उसपर कुछ लिखना चाहें, तो मैं आपको लिख भेजूंगा, हालांकि यह ब्यौरा होगा बड़ा ही दर्दनाक। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि पाकिस्तान में बिताए साल उनके लिए किस तरह रहें होंगें।

*भारत रत्न पाने वाले पहले गैर भारतीय

भारत सरकार ने 1987 में खान अब्दुल गफ्फार खान को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की। ऐसा पहली बार हो रहा था जब इस पुरस्कार के लिए किसी गैर भारतीय के नाम की घोषणा की गई थी। भारत रत्न के सम्मान मिलने के एक साल बाद ही 1988 में उनके घर पेशावर में उनको नज़रबंद कर दिया गया। पाकिस्तान की सरकार खान अब्दुल गफ्फार खान को जिंदगी के आखिरी साल में भी यातनाएं देने से बाज नहीं आ सके। इसी साल 20 जनवरी 1988 को उनका इंतकाल हो गया। फिर उनकी इच्छा के अनुरूप उन्हें अफगानिस्तान के जलालाबाद में दफन कर दिया गया।

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