महाबोधि मंदिर पर बौद्धों का हक़! गैर-बौद्ध प्रबंधन के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल जारी

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

विश्व प्रसिद्ध महाबोधि महाविहार मंदिर को बौद्ध समुदाय के नियंत्रण में सौंपने की मांग को लेकर 12 फरवरी से बोधगया में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल जारी है। इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे भिक्षु भदंत प्रज्ञाशीला ने मंदिर प्रबंधन में गैर-बौद्धों की भागीदारी को “धार्मिक हस्तक्षेप” करार देते हुए इसे बौद्ध समाज के अधिकारों का हनन बताया है।

*क्या है मामला?
महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल है, जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। इसके बावजूद, 1949 में बनाए गए महाबोधि मंदिर प्रबंधन अधिनियम के तहत मंदिर समिति में बौद्धों के साथ-साथ हिंदू प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया। इस प्रबंधन समिति में 9 सदस्य होते हैं, जिनमें 5 गैर-बौद्ध (मुख्य रूप से हिंदू) और 4 बौद्ध होते हैं। अध्यक्ष पद पर परंपरागत रूप से बिहार के ज़िला कलेक्टर होते हैं, जो अधिकतर हिंदू होते हैं।

बौद्ध समुदाय लंबे समय से इस अधिनियम को संशोधित कर मंदिर का संपूर्ण प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की मांग कर रहा है। उनका तर्क है कि हिंदू धर्मस्थलों का नियंत्रण हिंदू समाज के पास है, तो फिर महाबोधि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह बौद्धों को क्यों नहीं दिया जाता?

*भिक्षुओं का संघर्ष और प्रशासन की चुप्पी
भूख हड़ताल पर बैठे भिक्षु भदंत प्रज्ञाशीला समेत अन्य बौद्ध संतों का कहना है कि जब तक सरकार मंदिर का पूरा नियंत्रण बौद्ध समुदाय को नहीं सौंपती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। उनका आरोप है कि मंदिर की मौजूदा समिति बौद्धों के हितों की अनदेखी कर रही है और बौद्ध संस्कृति से जुड़े रीति-रिवाजों पर भी नियंत्रण करने की कोशिश कर रही है।

भिक्षुओं के बिगड़ते स्वास्थ्य के बावजूद प्रशासन अब तक कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं दिख रहा है। हालांकि, इस मुद्दे को लेकर देश-विदेश के बौद्ध संगठनों में आक्रोश बढ़ रहा है। हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और नेपाल समेत कई जगहों से बौद्ध अनुयायी इस आंदोलन को समर्थन देने बोधगया पहुंच रहे हैं।

*बिहार सरकार पर दबाव बढ़ा
बौद्ध समुदाय के संगठनों ने बिहार सरकार और केंद्र सरकार से मांग की है कि महाबोधि मंदिर प्रबंधन अधिनियम में संशोधन कर इसे पूरी तरह बौद्धों के हवाले किया जाए। सोशल मीडिया पर भी #FreeMahabodhiTemple ट्रेंड कर रहा है, जिससे इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिलने लगा है।

अब देखना यह होगा कि सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और क्या महाबोधि मंदिर का नियंत्रण बौद्ध समाज को सौंपा जाएगा या नहीं।

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