इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
महाराष्ट्र में में वामपंथी उग्रवाद पर प्रभावी नियंत्रण के उद्देश्य से ‘महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक, 2024’ को गुरुवार को विधानसभा और शुक्रवार को विधान परिषद से पारित कर दिया गया। सरकार ने इसे राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक बताते हुए कहा कि यह कानून माओवादी विचारधारा और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियों पर रोक लगाएगा।
मुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानमंडल में विधेयक पर चर्चा करते हुए कहा कि माओवादी संगठन संविधान विरोधी कार्यों में संलिप्त हैं और उन्हें समर्थन देने वाले शहरी नेटवर्क राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून केवल उग्रवादी तत्वों के विरुद्ध है, न कि लोकतांत्रिक आलोचना के।
इससे पहले, राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने विधेयक पर गठित संयुक्त प्रवर समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति को रिकॉर्ड 12,750 आपत्तियाँ और सुझाव प्राप्त हुए, जो राज्य विधानमंडल के इतिहास में एक नया कीर्तिमान है।
*कानून की मुख्य विशेषताएं
सरकार को किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित करने का अधिकार मिलेगा।
ऐसे संगठन की सदस्यता, संचालन, आर्थिक सहायता या प्रचार में संलिप्त व्यक्ति को 2 से 7 वर्ष की सज़ा और ₹2–5 लाख तक जुर्माना हो सकता है।
अपराध को संज्ञेय व गैर-जमानती की श्रेणी में रखा गया है।
सरकार को ऐसे संगठनों की संपत्ति और फंड जब्त करने का अधिकार प्राप्त होगा।
न्यायिक प्रक्रिया के लिए पूर्व-परीक्षण बोर्ड और सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा।
विधेयक को लेकर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और वामपंथी दलों ने इसे असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी करार दिया। विधान परिषद में विपक्ष ने वॉकआउट किया और सरकार पर जनमत दबाने का आरोप लगाया।
शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा, “यह विधेयक उन आवाज़ों को कुचलने की कोशिश है, जो सत्ता से असहमत हैं। सरकार इस कानून का इस्तेमाल सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और छात्रों को माओवादी ठहराकर दमन करने में कर सकती है।”
मानवाधिकार समूहों और अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह कानून मौजूदा सख्त कानूनों जैसे UAPA और MCOCA से भी अधिक शक्तिशाली है, जिससे दमन और दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है। विशेषज्ञों ने कहा कि परिभाषाएं अस्पष्ट हैं और आरोप सिद्ध करने की प्रक्रिया एकपक्षीय हो सकती है।
महाराष्ट्र इस प्रकार छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के बाद ऐसा कानून लागू करने वाला पांचवां राज्य बन गया है।
यह विधेयक राज्य की सुरक्षा नीतियों में एक निर्णायक मोड़ है। लेकिन इसके लागू होने के तरीक़े और नियमन में पारदर्शिता न होने पर यह लोकतंत्र के लिए चुनौती भी बन सकता है। शासन और अधिकारों के संतुलन की कसौटी अब इसी कानून से तय होगी।