“महिला दिवस: वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-कायनात में रंग”

“वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-कायनात में रंग,
इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूं।”
— अल्लामा इक़बाल

अर्थात्, स्त्री के अस्तित्व से ही यह सृष्टि सुंदर और जीवंत है। उसकी भूमिका से ही जीवन में उल्लास और ऊर्जा बनी रहती है।

हर वर्ष 8 मार्च को विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन न केवल महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का सम्मान करने का अवसर है, बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में ठोस कदम उठाने की प्रेरणा भी देता है। इस वर्ष का थीम “Accelerate Action” (कार्रवाई में तेजी लाएं) रखा गया है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के समावेशन को बढ़ावा देना और समाज में उनकी भूमिका को सशक्त बनाना है।

महिला दिवस का इतिहास:

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई जब महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।
1908 में न्यूयॉर्क में 15,000 कामकाजी महिलाओं ने कम वेतन, लंबे कार्य घंटे और मतदान के अधिकार की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
1909 में अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने 28 फरवरी को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया।
1910 में कोपेनहेगन में समाजवादी नेता क्लारा जेटकिन ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव रखा।
1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
फिर वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च को आधिकारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया।

भारत में महिलाओं की स्थिति:

भारत में महिलाओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान, कला, राजनीति और व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालाँकि, वे अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जिनमें लैंगिक भेदभाव, वेतन असमानता और सुरक्षा संबंधी मुद्दे शामिल हैं। महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के मामले में भी बढ़ोतरी हुई है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार
महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 4% की वृद्धि हुई।
देशभर में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए।
वहीं बलात्कार के 31,000 से अधिक मामले सामने आए।
वहीं घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है।

वहीं महिला साक्षरता दर की बात करें तो भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 70.3% है, जबकि पुरुषों की 84.7% है (2021 जनगणना पूर्वानुमान)।
वहीं महिलाओं का श्रम में भागीदारी दर 2023 में केवल 24% था, जो वैश्विक औसत 47% से काफी कम है।
वहीं कॉर्पोरेट सेक्टर में भागीदारी की बात करें तो भारत में केवल 4% महिलाएँ CEO या शीर्ष पदों पर हैं।

हालांकि हाल के वर्षों में भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी है।
सरकार ने 2023 में संसद और विधानसभाओं में 33% आरक्षण के लिए बिल पारित किया। लेकिन आज भी महिलाओं प्रतिनिधियों की जगह उनके करीबी रिश्तेदार ही सारे निर्णय लेते हैं।

पिछले सौ वर्षों में महिलाओं ने हर क्षेत्र में प्रगति की है, लेकिन उनका रास्ता अब भी आसान नहीं है। उन्हें समान अवसर देने और सशक्त बनाने के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे:
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना और न्याय प्रक्रिया को तेज़ करना होगा।
कार्यस्थलों पर समान वेतन नीति को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
महिलाओं की शिक्षा और विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित में भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है।
महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता बदलने के लिए जागरूकता अभियान और शिक्षा अनिवार्य है.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस केवल महिलाओं का जश्न मनाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह समाज में बदलाव लाने का भी समय है। महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने के साथ-साथ हमें उन चुनौतियों को भी पहचानना होगा जो वे अभी भी झेल रही हैं। सरकार, समाज और हर व्यक्ति को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाएँ समान अवसर प्राप्त करें और लैंगिक समानता को वास्तविकता बनाया जाए।

आज, इस अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम लैंगिक भेदभाव और असमानता को समाप्त करने के लिए अपने स्तर पर योगदान देंगे। जब महिलाएँ आगे बढ़ेंगी, तभी समाज और देश प्रगति करेगा।

(ये स्टोरी मानू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मुहम्मद फैजान ने लिखी है)

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