मानू में मेस की बदहाली पर छात्रों का विरोध, निष्कासित छात्रों ने हाईकोर्ट में दी चुनौती

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (मानू) में मेस की खराब स्थिति और अस्वच्छता के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो छात्रों—फैज़ान इक़बाल और होमा कौसर—को निष्कासित कर दिया। निष्कासन आदेश में यह भी उल्लेख किया गया कि इन छात्रों को भविष्य में विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा।

इस फैसले को तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जहां छात्रों ने इसे अवैध, मनमाना और संविधान के खिलाफ बताया है। न्यायमूर्ति बी. विजयसेन रेड्डी ने याचिका स्वीकार कर विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब मांगा है।

क्या है पूरा मामला?
मानू के छात्र लंबे समय से मेस की अस्वच्छ परिस्थितियों और खराब भोजन की शिकायत कर रहे थे। उनका आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहा था। इसके चलते छात्रों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया और अपनी मांगों को प्रशासन तक पहुँचाने के लिए ज्ञापन सौंपा।

हालांकि, प्रदर्शन के कुछ दिनों बाद प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए फैज़ान इक़बाल और होमा कौसर को निष्कासित कर दिया।और उनके भविष्य में प्रवेश पर भी रोक लगा दी।

छात्रों का पक्ष
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विश्वविद्यालय ने निष्कासन से पहले कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। उनका दावा है कि उन्होंने सिर्फ अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था और इसके बदले उन्हें अनुचित दंड दिया गया।

विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष

मानू प्रशासन का तर्क है कि प्रदर्शन से विश्वविद्यालय की शांति भंग हुई थी और अनुशासन बनाए रखने के लिए यह कार्रवाई आवश्यक थी। हालांकि, प्रशासन ने इस मामले में अभी तक सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और अगली सुनवाई

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे अपने फैसले का औचित्य स्पष्ट करें। इस मामले की अगली सुनवाई जल्द होने की संभावना है।

क्या कहती है शिक्षा जगत की राय?

शिक्षाविदों और छात्र संगठनों का कहना है कि विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक फैसले पारदर्शी और न्यायसंगत होने चाहिए। निष्कासन जैसी कठोर कार्रवाई से पहले छात्रों को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाना चाहिए।

इस केस का फैसला छात्र अधिकारों और प्रशासनिक न्याय के बीच संतुलन तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

इस मामले को लेकर छात्र समुदाय और सामाजिक संगठनों की निगाहें अब हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं।

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