
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
शुक्रवार को मध्य प्रदेश के रीवा जिला न्यायालय में एक मुस्लिम युवक को वकीलों और दक्षिणपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने घेरकर पीट दिया। युवक अपनी हिंदू मित्र के साथ अंतर्धार्मिक विवाह करने कोर्ट पहुंचा था। इस घटना ने न्यायिक प्रणाली और कानून के समानता सिद्धांत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
*कोर्ट में ही कानून की धज्जियां उड़ाई गईं
जानकारी के मुताबिक, युवक और युवती कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया के लिए वकीलों से परामर्श कर रहे थे। जब वकीलों को उनके धर्म के बारे में पता चला, तो उन्होंने इसे ‘लव जिहाद’ का मामला बताते हुए युवक पर हमला कर दिया। मौके पर पहुंची पुलिस ने हस्तक्षेप कर दोनों को बचाया और थाने ले गई।
*क्या वकील न्याय दिलाने के लिए हैं या हिंसा करने के लिए?
वकीलों का मुख्य कार्य न्याय की रक्षा करना होता है, लेकिन जब वही कानून के रक्षक हिंसा में शामिल हों, तो यह न्याय प्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। कोर्ट परिसर न्याय और कानून का प्रतीक होता है, लेकिन इस घटना ने साबित किया है कि वहां भी भेदभाव और हिंसा का माहौल बनाया जा रहा है।
*क्या पुलिस निष्पक्ष है या पक्षपाती?
अक्सर ऐसे मामलों में पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। यदि यही मामला उलटा होता—यानी लड़का हिंदू और लड़की मुस्लिम होती—तो क्या पुलिस और वकीलों की यही प्रतिक्रिया होती? क्या पुलिस एक समान कानूनी कार्रवाई कर रही है, या फिर धार्मिक पूर्वाग्रह इसमें शामिल है?
*पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
रीवा की घटना कोई अपवाद नहीं है। कुछ दिन पहले भोपाल कोर्ट में भी अंतर्धार्मिक विवाह करने आए एक मुस्लिम युवक को हिंदू संगठनों और वकीलों ने पीटा था। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
*संविधान और कानून की अवहेलना
भारतीय संविधान हर नागरिक को अपनी पसंद से विवाह करने का अधिकार देता है। लेकिन जब एक विशेष समुदाय के लोगों को अंतर्धार्मिक विवाह करने के लिए हिंसा का शिकार बनाया जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से समानता के अधिकार का हनन है।
*अब सवाल यह उठता है कि:
-क्या न्यायालय परिसर में ही न्याय की धज्जियां उड़ाई जाएंगी?
-क्या वकील और पुलिस केवल एक समुदाय के लोगों के खिलाफ ही सख्त होंगे?
-क्या भारत में कानून का शासन रहेगा या भीड़तंत्र हावी रहेगा?
इस घटना ने संविधान की मूल भावना पर एक गंभीर चोट पहुंचाई है। सरकार, न्यायपालिका और समाज को मिलकर यह तय करना होगा कि भारत संविधान के अनुसार चलेगा या धर्म के नाम पर भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा दिया जाएगा।