इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
कांग्रेस सांसद और उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता इमरान मसूद की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। वर्ष 2007 में सहारनपुर नगर पालिका परिषद में हुए ₹40.12 लाख के कथित वित्तीय घोटाले के मामले में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया है।
सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश अरविंद मिश्रा ने यह वारंट तब जारी किया जब मसूद लगातार अदालत की सुनवाई में अनुपस्थित रहे और उनकी ओर से दाखिल डिस्चार्ज याचिका भी खारिज कर दी गई।
मसूद पर आरोप है कि सहारनपुर नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने नगरपालिका के खाते से ₹40.12 लाख की हेराफेरी की। यह राशि वर्ष 2007 में फर्जी बिलों और फर्जी निर्माण कार्यों के माध्यम से निकाली गई थी। इस संबंध में नगर पालिका के तत्कालीन कार्यपालक अधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया था।
सीबीआई जांच में मसूद और नगर निगम के एक कर्मचारी हरश मलिक को आरोपी बनाया गया। जांच पूरी होने के बाद सीबीआई ने अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। मसूद की ओर से अदालत में कहा गया कि मामला राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है और उन्हें झूठा फंसाया गया है। लेकिन अदालत ने उनके तर्क को खारिज करते हुए केस को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बार-बार समन भेजे जाने के बावजूद मसूद अदालत में पेश नहीं हो रहे हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। इसके मद्देनज़र न्यायाधीश ने गैर-जमानती वारंट जारी करते हुए पुलिस को आदेश दिया कि वह इमरान मसूद को 18 जुलाई 2025 को अदालत में पेश करें।
अब तक मसूद की ओर से इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। कांग्रेस पार्टी की ओर से भी इस मामले में चुप्पी बरती जा रही है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि मसूद अपने वकीलों के माध्यम से मामले में आगे की कानूनी रणनीति तैयार कर रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह मामला इमरान मसूद की साख और आगामी राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है। गैर-जमानती वारंट के बाद यदि मसूद अदालत में पेश नहीं होते, तो उनकी गिरफ्तारी की कार्रवाई भी हो सकती है।