इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
ओडिशा में रह रहे बंगाली प्रवासी मजदूरों को ‘बांग्लादेशी’ कहकर बेवजह हिरासत में लेने, उनके पास वैध दस्तावेज़ होने के बावजूद BSF द्वारा जबरन सीमा पार भेजे जाने और लगातार हो रहे जातीय भेदभाव के विरोध में शुक्रवार को सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने कोलकाता में जोरदार प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारी सियालदह स्टेशन परिसर से रैली के रूप में मार्च करते हुए ओडिशा भवन पहुंचे, जहां सड़क पर सभा आयोजित की गई और ओडिशा सरकार के प्रतिनिधियों को एक लिखित डेलीगेशन सौंपा गया। सभा के दौरान वक्ताओं ने कहा कि ओडिशा में श्रमिकों की नागरिकता पर सवाल उठाकर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, जो न केवल असंवैधानिक है बल्कि पूरी तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन भी है।
SDPI के राज्य सचिव मसूदुल इस्लाम ने कहा कि “बंगाली बोलना आज ओडिशा में गुनाह बन चुका है। यह न केवल राजनीतिक उत्पीड़न है, बल्कि एक समुदाय विशेष के खिलाफ सुनियोजित साजिश है। जिन मजदूरों के पास आधार, वोटर कार्ड और यहां तक कि भूमि दस्तावेज़ हैं, उन्हें भी अवैध बांग्लादेशी कहकर BSF द्वारा जबरन सीमा पार भेजा जा रहा है।”
ओडिशा भवन में SDPI प्रतिनिधिमंडल और ओडिशा सरकार के अधिकृत प्रतिनिधि के बीच करीब डेढ़ घंटे तक बातचीत चली। प्रतिनिधिमंडल में राज्य अध्यक्ष हाकीकुल इस्लाम, महासचिव डॉ. कमाल बसीरुज़्ज़मां, संगठन सचिव सुमन मंडल, सचिव मसूदुल इस्लाम और दक्षिण मुर्शिदाबाद के ज़िला अध्यक्ष अब्दुल करीम मंडल शामिल थे।
बातचीत के दौरान ओडिशा सरकार के प्रतिनिधि ने प्रारंभ में कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन बाद में गृह सचिव से संपर्क कर पार्टी नेताओं को यह आश्वासन दिया गया कि ओडिशा सरकार इस विषय पर गंभीर है। गृह सचिव ने प्रतिनिधियों को लिखित आश्वासन दिया कि आगामी 15 दिनों के भीतर इस मामले में आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
SDPI की ओर से यह मांग भी की गई कि कोलकाता स्थित ओडिशा भवन पर बंगाली भाषा में भी नेमप्लेट लगाया जाए। इस पर गृह सचिव ने 20 दिनों के भीतर इसे लागू करने का भरोसा दिया।
सभा को संबोधित करते हुए SDPI के राज्य अध्यक्ष हाकीकुल इस्लाम ने चेतावनी दी कि यदि 15 दिनों के भीतर बांग्लाभाषी श्रमिकों पर हो रहा अत्याचार बंद नहीं हुआ और सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो पार्टी एक बार फिर ओडिशा भवन का घेराव करेगी और राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि बीते दिनों ओडिशा के विभिन्न जिलों— जैसे बालासोर, झारसुगुड़ा और सुंदरगढ़— में बड़ी संख्या में बंगाली श्रमिकों को हिरासत में लिया गया था। इनमें से कई को ‘अवैध बांग्लादेशी’ कहकर डिटेंशन सेंटर में भेजा गया, जबकि उनके पास सभी वैध भारतीय पहचान पत्र मौजूद थे।
इस मुद्दे को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार भी सक्रिय हुई है। राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने ओडिशा सरकार को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की है और हस्तक्षेप की मांग की है। वहीं, कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए ओडिशा सरकार से जवाब तलब किया है।
SDPI ने इसे मानवाधिकारों और संविधान की भावना के खिलाफ बताते हुए इसे राजनीति से प्रेरित कार्रवाई करार दिया है। पार्टी नेताओं ने कहा कि इस मामले पर यदि राज्य और केंद्र सरकार ने चुप्पी साधी रखी, तो यह आंदोलन और व्यापक होगा!