स्वतंत्र पत्रकारिता पर संगठित हमले अस्वीकार्य हैं: शम्स तबरेज़ क़ासमी! मक्तूब मीडिया और द वायर सहित अन्य मीडिया संस्थानों पर की गई कार्रवाई को लेकर कोगिटो मीडिया फाउंडेशन ने की निंदा

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

स्वतंत्र पत्रकारिता केवल एक पेशेवर आवश्यकता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक समाज का मूल आधार है। कोगिटो मीडिया फाउंडेशन पूरे देश में पत्रकारिता नैतिकता, ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग और नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इन्हीं उद्देश्यों के तहत हम भारत सरकार द्वारा हाल के दिनों में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया संस्थानों के विरुद्ध की गई कार्रवाइयों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं।ये बातें मीडिया संस्थाओं के एसोसिएशन कोगीटो मीडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष शम्स तबरेज क़ासमी ने प्रेस विज्ञप्ति में कही

उन्होंने कहा कि “सरकारी निर्देश के तहत मकतूब मीडिया, फ्री प्रेस कश्मीर और द कश्मीरियत जैसे डिजिटल मीडिया संस्थानों के X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट्स को भारत में ब्लॉक कर दिया गया है। इसके साथ ही, एक प्रतिष्ठित डिजिटल प्लेटफॉर्म The Wire की वेबसाइट भी देश में विभिन्न इंटरनेट सेवाओं पर अवरुद्ध कर दी गई है।यह केवल तकनीकी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक संगठित प्रयास है—जिसका मकसद स्वतंत्र आवाज़ों को खामोश करना और जनता को सच्चाई से वंचित रखना है।”

कोगीटो मीडिया फाउंडेशन ने कहा कि हमारी चिंता के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

1.संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। जब मीडिया संस्थानों को बिना किसी न्यायिक या स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया के ब्लॉक किया जाता है, तो यह संविधान का अपमान और एक खतरनाक प्रवृत्ति है।

2.कश्मीर पर रिपोर्टिंग को अपराध बनाना: कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में निष्पक्ष रिपोर्टिंग पहले से ही चुनौतीपूर्ण रही है। अब इसे अपराध की श्रेणी में डालना सच्चाई से डरने वाली नीति का प्रतीक है।

3.‘द वायर’ की वेबसाइट को ब्लॉक किया जाना एक चेतावनी संकेत है: जब एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित, पारदर्शी और गंभीर पत्रकारिता करने वाले संस्थान को दबा दिया जाता है, तो यह पूरे मीडिया समुदाय को यह संकेत देता है कि अगर आप सरकारी लाइन से हटकर बोलेंगे, तो यही अंजाम होगा।

4.सच से वंचित समाज कमज़ोर होता है: मीडिया सिर्फ खबरें नहीं देता, बल्कि जनचेतना का निर्माण करता है। जब मीडिया को दबाया जाता है, तो समाज का विवेक भी कुंद हो जाता है।

शम्स तबरेज क़ासमी ने कहा कि “हम मानते हैं कि यह केवल मीडिया पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला है!लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार, न्यायपालिका, संसद और मीडिया चार मजबूत स्तंभ होते हैं। जब इनमें से किसी एक स्तंभ को कमज़ोर किया जाता है, तो पूरा लोकतंत्र असंतुलन का शिकार होता है। दुर्भाग्यवश, वर्तमान समय में मीडिया को योजनाबद्ध तरीके से अस्थिर और मौन करने की कोशिशें की जा रही हैं।”

उन्होंने कहा कि “हम भारत सरकार और लोकतंत्र में आस्था रखने वाले सभी नागरिकों के समक्ष निम्नलिखित मांगें रखते हैं”:

1.सभी स्वतंत्र मीडिया संस्थानों के सोशल मीडिया अकाउंट्स और वेबसाइट्स की ब्लॉकिंग की तुरंत समीक्षा की जाए और यदि वे संविधान की सीमाओं में हैं तो उन्हें पुनः बहाल किया जाए।

2.जिन कार्रवाइयों के आधार अस्पष्ट या संदेहजनक हैं, उनकी न्यायिक जांच कराई जाए।

3.डिजिटल मीडिया की स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए एक समग्र राष्ट्रीय नीति बनाई जाए जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार की रक्षा करे।

4.सिर्फ इस आधार पर किसी मीडिया संस्थान को निशाना न बनाया जाए कि वह प्रभावशाली वर्गों की गलतियों को उजागर करता है।

5.जनता, सिविल सोसाइटी, छात्र संगठन और अन्य सामाजिक संस्थाएं मीडिया की स्वतंत्रता के पक्ष में एकजुट हों।

शम्स तबरेज क़ासमी ने कहा कि “हम सिर्फ सच्चाई के लिए जगह चाहते हैं। हम चाहते हैं कि जो पत्रकार या मीडिया संस्थान संवैधानिक दायरे में रहकर काम कर रहे हैं, उन्हें निडर होकर अपने दायित्व निभाने की छूट मिले। डर का माहौल पत्रकारिता का दुश्मन है, और पत्रकारिता विरोधी प्रवृत्ति वास्तव में लोकतंत्र विरोधी प्रवृत्ति होती है।हम भारत सरकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, गृह मंत्रालय और सभी संबंधित संस्थाओं से अपील करते हैं कि वे मीडिया से टकराव नहीं, संवाद करें। असहमति को दुश्मनी न मानें, बल्कि लोकतंत्र की शक्ति के रूप में स्वीकार करें।

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