इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित किए गए वक्फ़ संशोधन विधेयक 2025 के खिलाफ़ देशभर में उभरते जनाक्रोश को संगठित और लोकतांत्रिक मंच देने के उद्देश्य से “वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 29 जून 2025 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में किया जा रहा है। इस महत्त्वपूर्ण सम्मेलन को लेकर इमारत-ए-शरीआ, बिहार, उड़ीसा, झारखंड व बंगाल की ओर से दो दिवसीय सलाहकारी बैठकों का आयोजन 15 और 16 जून को पटना में किया गया।
पहली बैठक में शहर के प्रतिष्ठित उलमा-ए-दीन,इमाम,सामाजिक कार्यकर्ता,वकील,शिक्षाविद, व्यापारी,पत्रकार और अन्य समुदाय प्रतिनिधि शामिल हुए। वहीं दूसरी बैठक में पटना शहर की बड़ी मस्जिदों के इमामों ने भाग लिया।
बैठकों की अध्यक्षता इमारत-ए-शरीआ के अमीर-ए-शरीअत मौलाना सैयद अहमद वली फैसल रहमानी ने की। अपने संबोधन में उन्होंने कहा “वक्फ़ हमारी धार्मिक पहचान, शैक्षिक और सामाजिक विकास का आधार और हमारी नस्लों की अमानत है। जो कानून इसे सरकार के अधीन करना चाहता है, वह सिर्फ जमीनों का नहीं, बल्कि हमारी स्वतंत्र धार्मिक व्यवस्था और संविधान में मिले अल्पसंख्यक अधिकारों का भी हनन है।”
उन्होंने कहा कि 29 जून का सम्मेलन सिर्फ एक विरोध-प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारतीय मुसलमानों की जागरूकता, एकता और संवैधानिक संघर्ष का ऐतिहासिक बयान होगा। उन्होंने सभी वर्गों से सक्रिय भागीदारी की अपील की।
इमारत-ए-शरीआ के कार्यवाहक नाज़िम मुफ्ती मोहम्मद सईदुर्रहमान कासमी ने कहा कि वर्तमान केंद्र सरकार की वक्फ़ संशोधन की मंशा वक्फ़ की स्वायत्तता को समाप्त कर धार्मिक संपत्तियों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना है। उन्होंने कहा “यदि यह कानून लागू हुआ, तो मस्जिद, मदरसे, कब्रिस्तान, खानकाह और अन्य वक्फ़ संस्थाएं धीरे-धीरे समाप्त कर दी जाएंगी। यह केवल कानूनी नहीं, धार्मिक संकट है।”
उन्होंने साफ कहा कि इमारत-ए-शरीआ इस चुनौती का जवाब संविधान के दायरे में, जनांदोलन के माध्यम से देगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता और इमारत-ए-शरीआ के ट्रस्टी जावेद इक़बाल ने कहा कि “यह कानून वक्फ़ की मूल अवधारणा के ही खिलाफ़ है,सरकार की मंशा स्पष्ट है — वक्फ़ बोर्डों की स्वायत्तता को समाप्त कर उन्हें सरकारी अफसरों का विभाग बना देना। यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक संस्थाओं को प्रबंध करने का अधिकार देता है।”
रांची के क़ाज़ी-ए-शरीअत मुफ्ती काज़ी अनवर कासमी ने कहा कि इस कानून के तहत अगर सरकार वक्फ़ को ज़मीन न मानते हुए उसकी धार्मिक प्रकृति को समाप्त करती है, तो यह सिर्फ मुसलमानों की नहीं, देश की बहुलतावादी आत्मा की हत्या होगी।
पटना की प्रमुख मस्जिदों के इमामों की बैठक में यह तय किया गया कि शहर की हर मस्जिद में शुक्रवार के खुत्बों और आम जलसों के माध्यम से वक्फ़ के मुद्दे पर जागरूकता फैलाई जाएगी और लोगों से 29 जून को गांधी मैदान में भाग लेने की अपील की जाएगी।
मुफ्ती असद कासमी, इमाम जामा मस्जिद, पटना जंक्शन ने कहा “हम मस्जिदों से ऐलान करेंगे कि वक्फ़ पर चुप्पी अब गुनाह के बराबर है। अब हर मुसलमान की जिम्मेदारी है कि वह अपनी अमानत की रक्षा करे।”
मौलाना गोहर इमाम कासमी, इमाम शाही संगी मस्जिद, फुलवारी शरीफ ने कहा “यह सम्मेलन एक मिल्ली और इंसानी जिम्मेदारी है। हर खिताब, हर जुमा और हर जलसा अब 29 जून की ओर ले जाएगा।”
बैठक में यह तय किया गया कि 29 जून को गांधी मैदान में बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा के साथ अन्य राज्यों से आने वाले हजारों प्रतिभागियों के लिए शहर की मस्जिदों, मदरसों और घरों में मेहमानदारी की जाएगी। आयोजन को सफल बनाने के लिए जगह-जगह स्थायी व स्वयंसेवी कमेटियाँ बनाई जा रही हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम युवाओं को भी इस काम में लगाया गया है।
इमारत-ए-शरीआ के सहायक नाज़िम मुफ्ती अहमद हुसैन कासमी ने कहा “जैसे ‘दीन बचाओ देश बचाओ आंदोलन’ में गांधी मैदान ने इतिहास लिखा था, उसी तरह यह सम्मेलन वक्फ़, शरीअत और संविधान की रक्षा का प्रतीक बन जाएगा।”
“वक्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” सम्मेलन अब केवल एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि मुसलमानों की संवैधानिक चेतना, धार्मिक उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक संघर्ष का आंदोलन बन चुका है। 29 जून को गांधी मैदान में लाखों की भागीदारी यह साबित करेगी कि मुसलमान अपनी धार्मिक और सामूहिक संस्थाओं की रक्षा के लिए शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ रास्ता अपनाने को तैयार है।