इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने फ़ुलवारीशरीफ़ (पटना) के चर्चित मामले में आरोपी मुहम्मद बेलाल उर्फ़ इरशाद को ज़मानत देने का आदेश दिया है। बेलाल वर्ष 2022 में दर्ज एफआईआर (संख्या 827/2022) में आरोपी नंबर-30 के रूप में नामज़द थे और क़रीब दो साल सात महीने से जेल में बंद थे।
बेलाल पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 121, 121A, 153A, 153B, 120B, यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) की कई धाराओं और आर्म्स एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे। आरोप था कि वह एक प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े थे और कुछ धन लेन-देन में भी शामिल रहे।
बेलाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. आदित्य ने दलील दी कि उनका कथित संबंध उस संगठन से था, जिस पर प्रतिबंध बाद में लगाया गया। इसके अलावा, कुछ सह-आरोपी, जिनके साथ लेन-देन का आरोप है, पहले ही ज़मानत पा चुके हैं। बेलाल पर केवल ₹3.5 लाख की राशि का आरोप बचता है, जो रिश्तेदारों के बीच का लेन-देन था।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने ज़मानत का विरोध करते हुए कहा कि यह मामला हत्या की साज़िश और क़ानून-व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश से जुड़ा है और इसे ‘कंटिन्यूइंग ऑफ़ेन्स’ माना जाना चाहिए।
लेकिन न्यायमूर्ति एम.एम. सुन्दरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने माना कि ट्रायल की गति बेहद धीमी है। अभी तक केवल तीन गवाहों की गवाही हुई है, जबकि दर्जनों गवाह बाक़ी हैं। अदालत ने कहा कि बेलाल पहले ही ढाई साल से अधिक समय से जेल में हैं और मुक़दमे में वर्षों लग सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए बेलाल को ज़मानत दे दी और ट्रायल कोर्ट को एक साल के भीतर मुक़दमा पूरा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर बेलाल किसी ग़ैरक़ानूनी गतिविधि में शामिल होते हैं या ट्रायल में सहयोग नहीं करते, तो ज़मानत रद्द की जा सकती है।
यह आदेश उन मामलों पर नई रोशनी डालता है, जहां लंबी अवधि तक विचाराधीन कैदियों को ट्रायल पूरा न होने की वजह से जेल में रहना पड़ता है। अदालत ने साफ़ संदेश दिया है कि न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक देरी किसी भी आरोपी को अनिश्चित काल तक जेल में रखने का आधार नहीं हो सकती।