इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भगवान बुद्ध की अस्थियों और उनसे जुड़े कीमती रत्नों की 127 साल बाद भारत वापसी के साथ उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक पहल शुरू की है। सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा गांव में इन अवशेषों की स्थायी स्थापना के लिए राज्य सरकार ने ‘कपिलवस्तु बौद्ध विरासत पार्क’ बनाने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है।
साल 1898 में ब्रिटिश इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेपे ने पिपरहवा स्तूप की खुदाई में बुद्ध से जुड़े अस्थि-कण, राख, सोने के आभूषण और रत्न खोजे थे। तत्कालीन कानून के तहत अधिकांश अवशेष ब्रिटिश क्राउन के कब्जे में चले गए, लेकिन एक हिस्सा पेपे को रखने की अनुमति दी गई। इन्हीं रत्नों को हाल में हांगकांग स्थित Sotheby’s नीलामी घर में बेचा जाना था। भारत सरकार और निजी क्षेत्र के हस्तक्षेप से यह नीलामी रोकी गई और 30 जुलाई 2025 को ये अवशेष भारत लाए गए।
प्रदेश पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के अनुसार, लगभग 20.8 हेक्टेयर में बनने वाले इस विरासत पार्क में गौतम बुद्ध के जीवन की झलक दिखाने के लिए Life-Journey Sculpture Trail, शाक्य व वैदिक परंपराओं पर आधारित आधुनिक Interpretation Centre, एक भव्य बौद्ध स्तूप और ध्यान क्षेत्र बनाए जाएंगे।
पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए कैफेटेरिया, छात्रावास और आधुनिक सुविधाओं का भी प्रावधान होगा। नई तकनीकों, खासकर AI-आधारित कहानी कहने की विधियों का उपयोग कर इसे एक वैश्विक बौद्ध पर्यटन केंद्र बनाने की योजना है।
मुख्य सचिव (पर्यटन एवं संस्कृति) मुकेश मेश्राम ने कहा कि अवशेषों को उच्च-सुरक्षा कक्ष में रखा जाएगा। इसके लिए सेंसरयुक्त प्रणाली, तीन स्तरीय मानवीय सुरक्षा घेरा और आधुनिक अलार्म सिस्टम की व्यवस्था होगी।
परियोजना को लेकर यूपी के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह और अधिकारियों की टीम ने केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात की है। राज्य सरकार चाहती है कि इस ऐतिहासिक पहल को केंद्र सरकार का भी वित्तीय व तकनीकी सहयोग मिले।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परियोजना न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अहम होगी। बौद्ध सर्किट को बढ़ावा देने से अंतरराष्ट्रीय तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि होगी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। नेपाल से आने वाले तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए ककरहवा सीमा पर एक आप्रवासन कार्यालय खोलने का प्रस्ताव भी है।
पिपरहवा अवशेषों की घर वापसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “गौरव का क्षण” बताया है। अब सवाल है कि उत्तर प्रदेश सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना कितनी जल्दी जमीन पर उतरती है। अगर सफल रही, तो यह न केवल पिपरहवा बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश को वैश्विक बौद्ध मानचित्र पर एक नई पहचान दिला सकती है।