इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर Campaign Against State Repression (CASR) की ओर से दिल्ली के प्रेस क्लब में एक अहम प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर में यूएपीए और अन्य कठोर क़ानूनों के तहत गिरफ्तार पत्रकारों के साथ एकजुटता जताई गई।
इस कांफ्रेंस में फिल्मकार व लेखक संजय काक, पत्रकार प्रबीर पुरकायस्थ, लेखक शरजील उस्मानी और पत्रकार रेजाज़ एम शिबा सैयद शामिल हुए। वक्ताओं ने कहा कि भारतीय राज्य आज पत्रकारिता की आज़ादी को जिस तरह कुचल रहा है, वह “अघोषित आपातकाल” जैसा है।
प्रबीर पुरकायस्थ ने इरफान मेहराज के साथ जेल में बिताए वक्त को याद करते हुए कहा कि “शहरों के पत्रकारों पर हो रहे दमन की तो चर्चा होती है, लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे पत्रकारों को राज्य और सामंती ताक़तों से दोहरी हिंसा का सामना करना पड़ता है।” उन्होंने एक जुड़े हुए नेटवर्क के ज़रिए पत्रकारों के बीच परस्पर सहयोग, कानूनी सहायता और समर्थन को जरूरी बताया।
संजय काक ने कश्मीर में मीडिया पर हो रहे दमन को उठाते हुए कहा कि इरफान मेहराज पर पैलेट गन से अंधा किए गए लोगों के साथ एकजुटता दिखाने पर यूएपीए लगा दिया गया। उन्होंने बताया कि कैसे मेहराज के 2019 से पहले के कानूनी रिपोर्ट्स को आतंकी गतिविधि के सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया गया।
“कभी कश्मीर में जीवंत पत्रकारिता होती थी, अब वह केवल पर्यटन के नाम पर ख़बरों में आता है।”, उन्होंने अफसोस जताया।
शरजील उस्मानी ने कहा कि मुख्यधारा की मीडिया एक वैकल्पिक झूठा नैरेटिव बना रही है जिसमें “अर्बन नक्सल” और “आतंकी” जैसे लेबल लगाए जा रहे हैं। नैनीताल की हालिया घटना का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एक बलात्कार के आरोपी को मुस्लिम बताकर सांप्रदायिक हिंसा में बदल दिया गया और 200 साल पुरानी मस्जिद को तोड़ डाला गया।
एक लिखित संदेश में इप्शा ने पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का ज़िक्र किया जो बस्तर में सड़क घोटाले की रिपोर्टिंग कर रहे थे। उन्होंने गौरी लंकेश, 200 से ज़्यादा फ़िलस्तीनी पत्रकारों की शहादत और रूपेश कुमार सिंह की गिरफ़्तारी को राज्य की साज़िश बताया।
“रूपेश कुमार पर अलग-अलग राज्यों में 5 झूठे मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें से तीन एफआईआर में तो उनका नाम भी नहीं था।” — इप्शा ने कहा।
रेजाज़ सैयद ने रूपेश कुमार सिंह द्वारा जेल में लिखी एक कविता पढ़ी और बताया कि कैसे उन्हें केरल में मुस्लिमों पर हिंसा और कर्नाटक में आदिवासियों पर अत्याचार की रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तार किया गया।
उन्होंने कहा, “इरफान मेहराज को इसलिए जेल में डाला गया क्योंकि उन्होंने कश्मीर को ‘धरती का स्वर्ग’ के भ्रम से बाहर लाकर वहां की सच्चाई दिखाई।”
कांफ्रेंस का समापन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की भूमिका पर चर्चा के साथ हुआ। वक्ताओं ने बताया कि रूपेश कुमार को एक “पेन ड्राइव” में नाम होने के आधार पर गिरफ्तार किया गया और इसके बाद 60 से अधिक छापे मारे गए, जिनका निशाना पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का व्यापक वर्ग बना। यह दर्शाता है कि राज्य दमन किस तरह से संगठित और बहुआयामी रूप ले चुका है।