इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
हिंदुत्वा एजेंडा और इस्लामोफोबिक कंटेंट के लिए बदनाम चैनल सुदर्शन न्यूज़ के बिहार चैप्टर का हाल ही में उद्घाटन हुआ। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक और पूर्व मंत्री समीर महासेठ ने शिरकत की। उद्घाटन समारोह के बाद समीर महासेठ ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर कहा, “उम्मीद है ये नया मंच बिहार की सच्ची आवाज़ बनेगा और जनहित में निडर पत्रकारिता करेगा।”
लेकिन सोशल मीडिया पर समीर महासेठ की इस भागीदारी और टिप्पणी को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या राजद जैसे सेक्युलर पार्टी के विधायक को ऐसे चैनल के मंच पर होना चाहिए जो लगातार मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों और विपक्षी नेताओं के खिलाफ नफ़रत भरा एजेंडा चलाता रहा है?
सवालों की बौछार
वायरल होते एक पोस्ट में एक यूज़र ने पूछा—”क्या ये लालू यादव को ‘पाकिस्तानी’, मुसलमानों को ‘आतंकी’, दलितों-आदिवासियों को ‘अर्बन नक्सल’ और राहुल गांधी को ‘ईसाई एजेंट’ बताने वाली निडर पत्रकारिता करेंगे?”
एक अन्य व्यक्ति ने लिखा, “राजद के नेताओं को तय करना चाहिए कि वे वाकई सामाजिक न्याय की राजनीति कर रहे हैं या फासीवादी ताक़तों को मंच दे रहे हैं?”
पटना के मशहूर पत्रकार सीमाब अख़्तर ने फेसबुक पर लिखा कि “इनका नाम है Samir Mahaseth है ये कह रहे हैं कि मुसलमानों को खुलेआम गाली देना वाला Sudarshan News वाला पत्रकारिता का धर्म निभाएगा ,जब भी मधुबनी में मिले इसको पूछिए”
मधुबनी के युवा पत्रकार सदफ़ कामरान ने लिखा कि “नफ़रत फैलाने वालों को विधायक जी प्रमोट कर रहे है।”
सुदर्शन न्यूज़ का विवादित इतिहास
सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख सुरेश चव्हाणके अक्सर सोशल मीडिया पर और अपने टीवी कार्यक्रमों में मुसलमानों और दलितों के खिलाफ घृणात्मक बयानबाज़ी के लिए जाने जाते हैं। यह चैनल कई बार ‘UPSC जिहाद’, ‘लव जिहाद’, ‘मदरसा आतंक’ जैसे शीर्षकों के साथ कार्यक्रम कर चुका है, जिन पर व्यापक आलोचना और कानूनी कार्यवाही भी हुई है।
राजद की चुप्पी या समर्थन?
फिलहाल राजद की तरफ से इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन समीर महासेठ की पोस्ट को अब तक पार्टी ने न तो खंडन किया है और न ही उससे दूरी बनाई है। यह स्थिति राजद के अल्पसंख्यक समर्थक आधार में असहजता पैदा कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना बिहार की सेक्युलर राजनीति के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। अगर सत्ताधारी या विपक्षी सेक्युलर पार्टियां इस तरह के मीडिया प्लेटफॉर्म्स को वैधता देंगी तो आने वाले समय में उनके नैतिक दावों पर सवाल उठेंगे।
राजद विधायक समीर महासेठ की इस भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब सेक्युलर राजनीति को भी आत्मचिंतन करना होगा। क्या वो सच में नफ़रत की राजनीति के खिलाफ हैं या राजनीतिक समीकरणों के चलते हर मंच पर खड़े होने को तैयार हैं?