इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
संभल ज़िले के चंदौसी में स्थित 17वीं शताब्दी की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद एक बार फिर विवाद का केंद्र बन गई है। मस्जिद परिसर में नमाज़ अदा करने पर रोक लगाने को लेकर दाखिल की गई याचिका को अदालत ने स्वीकार कर लिया है और इस पर अब 21 जुलाई को सुनवाई निर्धारित की गई है। यह याचिका सिमरन गुप्ता नाम की एक स्थानीय याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल की गई है, जिनका दावा है कि मस्जिद हरिहर मंदिर के अवशेषों पर बनी है।
याचिका में अदालत से यह भी आग्रह किया गया है कि मामले के निपटारे तक मस्जिद परिसर को ताला लगाकर प्रशासन के नियंत्रण में सौंप दिया जाए, और किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि पर तत्काल रोक लगाई जाए।
मस्जिद का प्रबंधन करने वाली शाही जामा मस्जिद कमेटी ने याचिका को “संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला” करार दिया है। कमेटी के अध्यक्ष हाजी ज़फ़र अली ने बयान जारी कर कहा “सदियों से यहां मुस्लिम समाज नमाज़ अदा करता आया है। अब अचानक इसे विवादित स्थल कहकर बंद कराने की साज़िश हो रही है, जो न केवल अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि सामाजिक सद्भाव के लिए भी ख़तरा है।”
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें मस्जिद परिसर के सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ही चंदौसी में यह नई याचिका दाखिल की गई है, जिससे स्थानीय मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा और नाराज़गी बढ़ गई है।
कानून विशेषज्ञ इस याचिका को ‘Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991’ के सीधे उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप था, उसे बदला नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट भी कई मामलों में इस कानून को धर्मनिरपेक्षता की रीढ़ बता चुका है।
प्रो. मुश्ताक अहमद, कानूनी जानकार, कहते हैं “मस्जिद को विवादित स्थल घोषित करने की कोशिश 1991 के अधिनियम का साफ़ उल्लंघन है। अगर अदालतें इस तर्क को स्वीकार करती हैं, तो देश में सैकड़ों धार्मिक स्थल विवाद में घसीटे जा सकते हैं।”
चंदौसी के स्थानीय मुस्लिमों में इस मामले को लेकर गहरा रोष है। मस्जिद के इमाम मौलाना नसीरुद्दीन ने कहा कि “यह इबादतगाह किसी सरकार या पार्टी की नहीं, अल्लाह की है। नमाज़ को बंद कराने की बात किसी भी लोकतंत्र या संविधान में स्वीकार्य नहीं हो सकती।”
वहीं, कुछ हिंदू संगठनों ने याचिकाकर्ता का समर्थन करते हुए सर्वेक्षण की मांग को न्यायोचित बताया है और कहा है कि अगर मस्जिद वास्तव में मंदिर के ऊपर बनी है, तो तथ्य सामने आने चाहिए।
चंदौसी की शाही जामा मस्जिद का मामला सिर्फ एक मस्जिद की दीवारों तक सीमित नहीं है, यह भारत की धार्मिक आज़ादी, न्यायिक तटस्थता और सांप्रदायिक सौहार्द की भी परीक्षा बन चुका है। अब देखना यह है कि 21 जुलाई को अदालत क्या फैसला सुनाती है और क्या यह मामला देशव्यापी बहस का कारण बनेगा।