
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुक्रवार को संभल हिंसा मामले में 74 मुस्लिम युवाओं को संदिग्ध बताते हुए उनके पोस्टर शाही जामा मस्जिद और शहर के अन्य स्थानों पर चिपका दिए। स्थानीय लोगों ने इस कदम को मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की रणनीति बताया है।
*क्या है पूरा मामला?
24 नवंबर 2024 को संभल में उस समय हिंसा भड़क गई थी जब ASI की एक टीम शाही जामा मस्जिद का सर्वे करने पहुंची थी। उनके साथ हिंदुत्ववादी संगठनों की भीड़ थी, जो “जय श्री राम” के नारे लगा रही थी। जब स्थानीय मुस्लिम विरोध में इकट्ठा हुए और तनाव बढ़ा, तो पुलिस ने बल प्रयोग किया और फायरिंग कर दी, जिसमें छह मुस्लिम युवाओं की मौत हो गई।
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को “दंगाई” बताते हुए उनके खिलाफ मामले दर्ज किए, जबकि स्थानीय लोग इसे मुस्लिमों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई बता रहे हैं।
*पुलिस का दावा
संभल के अपर पुलिस अधीक्षक (उत्तर) श्रीश चंद्र ने मीडिया को बताया कि,
“इन पोस्टरों में उन संदिग्धों की तस्वीरें हैं, जो पत्थरबाजी में शामिल थे। ये तस्वीरें ड्रोन कैमरा, सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल फोन वीडियो से ली गई हैं। उनकी पहचान की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है, इसलिए जनता से उनकी पहचान में मदद करने के लिए पोस्टर लगाए गए हैं।”
*कानूनी आपत्ति और विरोध
स्थानीय वकीलों और समुदाय के नेताओं ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। एक वकील ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एंटी-CAA प्रदर्शनों के दौरान ऐसे पोस्टरों को गैरकानूनी करार दिया था। हाईकोर्ट ने इसे निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन बताते हुए हटाने का आदेश दिया था।
उन्होंने यह भी कहा कि इन पोस्टरों में तस्वीरें धुंधली और पहचान से बाहर हैं, जिससे इन्हें कानूनी रूप से चुनौती देना मुश्किल हो गया है। “यह पूरी तरह से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, लेकिन पुलिस अपने फैसले को सही ठहराने में लगी है,” उन्होंने कहा।
*अब तक 76 गिरफ्तारियां, FIR दर्ज
अब तक 76 मुस्लिमों, जिनमें चार महिलाएं भी शामिल हैं, को छतों से पत्थरबाजी करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। पुलिस ने इस हिंसा के संबंध में आठ एफआईआर दर्ज की हैं।
*स्थानीय लोगों का आरोप: पुलिस कर रही मुस्लिमों को टारगेट
स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह कार्रवाई एकतरफा है और केवल मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए की जा रही है। उनका कहना है कि पुलिस ने हिंदुत्ववादी भीड़ पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि हिंसा की शुरुआत उनके उकसावे से हुई थी।
संभल की जामा मस्जिद के सदर के भाई और कुछ स्थानीय लोगों ने इस कदम का विरोध किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें जिला मजिस्ट्रेट से शिकायत करने के लिए कह दिया।
*क्या पुलिस कार्रवाई निष्पक्ष है?
इस पूरे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:
1.क्या पुलिस ने हिंदुत्ववादी भीड़ के खिलाफ कोई कार्रवाई की?
2.क्या बिना पुष्टि के किसी समुदाय विशेष के युवाओं के पोस्टर लगाना कानून सम्मत है?
3.क्या यह निजता के अधिकार और संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है?
स्थानीय नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता अब इस मामले को न्यायिक जांच के लिए आगे ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।