इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) ने बिहार की मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) पर निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के दावों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफ़ी ने एक प्रेस बयान में कहा कि केवल 60 दिनों में 98.2% वोटरों के दस्तावेज़ जुटा लेना न केवल अविश्वसनीय है, बल्कि इसमें भारी गड़बड़ियों और पिछड़े वर्गों को निशाना बनाने की आशंका है।
शफ़ी ने आरोप लगाया कि औसतन प्रतिदिन 1.64% वोटर दस्तावेज़ जुटाना ‘‘जादुई अनुपालन’’ जैसा है, खासकर तब जबकि बिहार में बाढ़ और बड़े पैमाने पर पलायन की स्थिति बनी हुई थी। ज़मीनी रिपोर्टों के मुताबिक बूथ लेवल अधिकारियों ने कई बार वोटरों की सहमति के बिना फॉर्म भरे या केवल आंकड़े पूरे करने के लिए नकली गिनती दिखाई।
एसडीपीआई ने मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नामों को हटाए जाने को भी संदिग्ध बताया। पार्टी के अनुसार, इनमें से 7 लाख अधिक महिलाएं हैं, खासकर 18 से 49 वर्ष के बीच के युवा वोटरों में। इस लैंगिक असमानता को पार्टी ने ‘‘जानबूझकर प्रवासी महिलाओं को वोट के अधिकार से वंचित करने की साज़िश’’ करार दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि कई जीवित लोगों को ‘‘मृत’’ बताकर सूची से हटा दिया गया है।
पार्टी ने यह भी कहा कि कठोर दस्तावेज़ी मांगों ने, खासकर जन्म प्रमाणपत्र की शर्त ने, 3.7 करोड़ से अधिक योग्य वोटरों को सूची से बाहर किए जाने के खतरे में डाल दिया। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार को वैध दस्तावेज़ मानने की अनुमति दी थी, फिर भी यह प्रक्रिया गरीबों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी वर्गों के लिए ‘‘बहिष्करण का औज़ार’’ बनी हुई है।
एसडीपीआई ने चुनाव आयोग से पूरे पुनरीक्षण प्रक्रिया का स्वतंत्र ऑडिट कराने, चुनावी आंकड़ों को पूरी तरह पारदर्शी बनाने और ग़लत तरीके से हटाए गए वोटरों की तुरंत बहाली की मांग की है। साथ ही उसने सुप्रीम कोर्ट और नागरिक समाज से अपील की है कि वे मताधिकार की रक्षा के लिए निर्णायक हस्तक्षेप करें।
एसडीपीआई का आरोप है कि यह पूरा अभ्यास 2025 के बिहार चुनाव को ‘‘वोट चोरी’’ की रणनीति से प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसे को कमजोर करता है।