
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
शरजील इमाम। एक नाम जो भारत के हाल के इतिहास में विवाद, विरोध और कानूनी लड़ाई का प्रतीक बन गया। उनकी कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक ऐसे दौर की है जहां अभिव्यक्ति की आज़ादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच की लकीर तेजी से धुंधली होती जा रही है। यह कहानी है उन पांच सालों की, जो शरजील ने जेल की सलाखों के पीछे बिताए।
*शुरुआत: एक छात्र से एक्टिविस्ट तक का सफर
शरजील इमाम का जन्म बिहार के जहानाबाद जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई की और बाद में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में शोध छात्र के रूप में दाखिला लिया। जेएनयू उन दिनों छात्र राजनीति और सामाजिक आंदोलनों का केंद्र था। यहीं से शरजील ने देश के मुद्दों पर बोलना और लिखना शुरू किया।
2019 में जब सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर कदम बढ़ाए, तो शरजील इमाम उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने इसे भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ बताया। उन्होंने देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
*विवादास्पद भाषण और गिरफ्तारी
दिसंबर 2019 में, शरजील इमाम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में एक भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने CAA और NRC के खिलाफ आवाज उठाई और कहा कि अगर सरकार ने इन कानूनों को वापस नहीं लिया, तो पूर्वोत्तर भारत और बाकी देश के बीच चक्का जाम किया जाए और देश भर में युवाओं की टीम बने जो कि हर हाइवे का चक्काजाम (शांतिपूर्ण तरीके से) करे। उनके इस बयान को “देशद्रोही” और “हिंसा भड़काने वाला” बताया गया।
28 जनवरी 2020 को शरजील इमाम ने सरेंडर किया जिसे दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तारी के तौर पर दिखाया। उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (देशद्रोह) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा चलाया गया। उनकी गिरफ्तारी ने देशभर में एक बहस छेड़ दी कि क्या यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी कदम।
*जेल में पांच साल: संघर्ष और अकेलापन
शरजील इमाम को पहले दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया, और बाद में असम की डिब्रूगढ़ जेल में ट्रांसफर कर दिया गया। जेल में उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके परिवार ने बताया कि उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दी जा रही थीं। उनकी सेहत खराब होने लगी, और उन्हें मानसिक तनाव से जूझना पड़ा।
जेल में रहते हुए भी शरजील ने पढ़ना और लिखना जारी रखा। उन्होंने कई लेख लिखे, जो उनके वकीलों और परिवार के जरिए बाहर आए। इन लेखों में उन्होंने अपने विचारों को स्पष्ट किया और कहा कि वह किसी भी तरह की हिंसा के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना था कि उन्हें सिर्फ इसलिए फंसाया गया है क्योंकि वह सरकार की नीतियों के खिलाफ बोल रहे थे।
*परिवार का संघर्ष
शरजील की गिरफ्तारी ने उनके परिवार को भी बुरी तरह प्रभावित किया। उनके भाई और मां ने कई बार मीडिया से बात की और कहा कि शरजील निर्दोष हैं। उन्होंने शरजील की रिहाई के लिए कई याचिकाएं दायर कीं, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। परिवार का कहना था कि शरजील को सिर्फ इसलिए सजा दी जा रही है क्योंकि वह एक मुस्लिम युवा हैं और उन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई।
*कानूनी लड़ाई और सवाल
शरजील इमाम के केस ने कई सवाल खड़े किए। क्या उनके भाषण ने वाकई हिंसा भड़काई थी? क्या देशद्रोह के आरोप सही थे? कई मानवाधिकार संगठनों और बुद्धिजीवियों ने शरजील के समर्थन में आवाज उठाई। उनका कहना था कि यह केस अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने की कोशिश है।
हालांकि, सरकार और कुछ लोगों का मानना था कि शरजील के भाषण ने देश की एकता और अखंडता को खतरे में डाला था। उन्हें एक “खतरनाक व्यक्ति” बताया गया, जिसे सजा मिलनी चाहिए।
*पांच साल बाद: क्या बदला?
28 जनवरी 2025 तक, शरजील इमाम को जेल में पांच साल पूरे हो चुके हैं। इन पांच सालों में उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। वह एक छात्र से एक राजनीतिक कैदी बन गए। उनका केस अभी भी कोर्ट में लंबित है, और उनकी रिहाई की उम्मीद धुंधली सी हो चुकी है
शरजील इमाम की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस समाज की है जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा है। यह कहानी उन सवालों को जन्म देती है जो हमें अपने लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के बारे में सोचने पर मजबूर करते हैं। क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब सिर्फ सरकार के समर्थन में बोलना है? क्या विरोध करने वालों को देशद्रोही कहा जाना चाहिए?
शरजील इमाम की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। यह अभी भी जारी है, और इसके अंत में क्या होगा, यह वक्त ही बताएगा।