इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार के शेखपुरा ज़िले से एक बार फिर पुलिसिया बर्बरता और जातिगत घृणा की शर्मनाक तस्वीर सामने आई है। मेहुस थानाध्यक्ष प्रवीण चंद्र दिवाकर पर आरोप है कि उन्होंने एक ब्राह्मण ई-रिक्शा चालक को जाति पूछकर न सिर्फ बेरहमी से पीटा, बल्कि थाने में जबरन ज़मीन पर थूक चटवाया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस अधीक्षक ने तत्काल थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया है। मामले ने ज़िले में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है।
पीड़ित रिक्शा चालक प्रद्युमन कुमार ने बताया कि वह रोज़ की तरह सोमवार शाम करीब साढ़े सात बजे शेखपुरा से सवारी लेकर मेहुस गांव गया था। सवारी उतारने के बाद वह चौक की ओर बढ़ रहा था, तभी एक बुलेट सवार ने उसे ओवरटेक कर रोक लिया और गाली-गलौज करने लगा। वह सादे कपड़े में था, इसलिए पहचान नहीं पाया। बाद में पता चला कि वह मेहुस थाना प्रभारी है। उसने पहले मुझे गालियां दी, फिर पुलिस वाहन बुलाकर पकड़वाया और सड़क पर ही 50 से 60 बार पीटा गया।”
रिक्शा चालक ने बताया कि उसके मुंह को सूंघकर उस पर शराब पीने का आरोप लगाने की कोशिश की गई, लेकिन पुष्टि न होने पर थप्पड़ मारकर थाने ले जाया गया, जहां उसे फिर पीटा गया और गालियां दी गईं।थाने में मेरी जाति पूछी गई। जब मैंने ब्राह्मण बताया, तो थानेदार ने कहा — ‘ब्राह्मण जाति के लोगों से मुझे नफ़रत है।’ फिर ज़मीन पर थूककर जबरन थूक चटवाया गया।”
घटना के बाद प्रद्युमन को गंभीर चोटें आई हैं और उन्हें शेखपुरा सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पीड़ित ने परिजनों व स्थानीय विधायक सुदर्शन कुमार को पूरे मामले की जानकारी दी।
विधायक सुदर्शन कुमार ने घटना को “गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और सत्ता की तानाशाही का उदाहरण” बताते हुए पुलिस अधीक्षक से तत्काल जांच और दोषी अधिकारी की गिरफ्तारी की मांग की है।
शेखपुरा के एएसपी डॉ. राकेश ने बताया कि घटना का वीडियो सामने आने और प्रारंभिक जांच में तथ्य पुष्ट होने के बाद थानाध्यक्ष प्रवीण चंद्र दिवाकर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। “कानून को हाथ में लेने की इजाज़त किसी को नहीं है। थानेदार का बयान भी अस्वीकार्य है। प्राथमिकी के आधार पर आगे की विधिक कार्रवाई की जाएगी।”
घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कई सामाजिक संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वंचित समुदायों के प्रतिनिधियों ने राज्य सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने पीड़ित को मुआवजा, सुरक्षा और उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग रखी है।
शेखपुरा की यह घटना न सिर्फ पुलिसिया दमन की एक और कड़ी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सत्ता में बैठे कुछ अधिकारी जाति के नाम पर आम नागरिकों को अपमानित करने से नहीं चूक रहे हैं।
क्या यह मामला महज़ निलंबन पर सिमट जाएगा, या राज्य सरकार इस घटना को न्याय और मानवता की कसौटी मानेगी?