इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
असम के सिलचर निवासी युवा मैकेनिकल इंजीनियर शमीम बरभुईया ने धर्म के आधार पर नौकरी से इनकार किए जाने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान HR ने उनसे सीधे पूछा—“आप हिंदू हैं या मुस्लिम?” और जैसे ही उन्होंने बताया कि वह मुस्लिम हैं, कंपनी ने नौकरी का प्रस्ताव वापस ले लिया।
शमीम ने बताया कि उन्होंने जॉब पोर्टल Indeed के माध्यम से आवेदन किया था। HR ने उनकी प्रोफाइल देखने के बाद उन्हें ₹18,000 मासिक वेतन का ऑफर दिया और कहा गया कि वह महीने की 6 तारीख़ के बाद ज्वाइन कर सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने जॉइनिंग लेटर के बारे में सवाल किया तो जवाब टाल दिया गया।
इसके बाद फोन पर हुई बातचीत के दौरान HR ने उनसे धर्म पूछा। शमीम ने कहा—“जैसे ही मैंने बताया कि मैं मुस्लिम हूँ, तुरंत कहा गया कि कोई पद खाली नहीं है। जबकि कुछ ही मिनट पहले वही HR मुझे जॉइनिंग के लिए बुला रहे थे।”
शमीम ने इसे अपने लिए बेहद अपमानजनक अनुभव बताया। उन्होंने कहा “मेरी योग्यता, मेरे कौशल या मेरे काम पर बात ही नहीं हुई। सिर्फ धर्म पूछकर नौकरी से वंचित कर दिया गया। यह बेहद तकलीफ़देह है और संविधान के बराबरी के अधिकार का खुला उल्लंघन है।”
भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। वहीं अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में समान अवसर की गारंटी देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि निजी कंपनियों को भी भर्ती प्रक्रिया में इन मूल सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और किसी भी रूप में धर्म-आधारित सवाल नहीं पूछना चाहिए।
शमीम का मामला अकेला नहीं है। हाल के वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों से धार्मिक पहचान के आधार पर भेदभाव की घटनाएँ सामने आई हैं। कभी कॉलेजों में हिजाब को लेकर विवाद हुआ, तो कभी पेशेवर नौकरियों में दाढ़ी या पहनावे पर सवाल उठाए गए। यह घटनाएँ बताती हैं कि कार्यस्थलों पर समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
शमीम ने जॉब पोर्टल्स और कंपनियों से निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया अपनाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि नौकरी में चयन सिर्फ योग्यता और कौशल के आधार पर होना चाहिए, न कि धर्म या जाति देखकर। साथ ही उन्होंने इस मामले में जागरूकता बढ़ाने और ठोस कार्रवाई की मांग की है।