
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू करने की सराहना की, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि इसका राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगा। सिन्हा ने कहा कि UCC को लागू करने से पहले देशभर में सभी राजनीतिक दलों के बीच व्यापक चर्चा होनी चाहिए।
सिन्हा ने संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “उत्तराखंड में UCC लागू करना एक सराहनीय कदम है, लेकिन देशभर में इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।” उन्होंने भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में एक समान कानून को लागू करने की जटिलताओं को रेखांकित किया। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने भोजन से संबंधित कानूनों में क्षेत्रीय भिन्नताओं की ओर इशारा किया, और सवाल उठाया कि कैसे यह समानता लागू की जा सकती है, जब विभिन्न राज्यों में कुछ खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध अलग-अलग हैं।
*उत्तराखंड और गुजरात में UCC लागू करने की प्रक्रिया
27 जनवरी को, उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना जिसने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया। इसके बाद गुजरात सरकार भी इस दिशा में कदम बढ़ाने पर विचार कर रही है, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) की लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धताओं में से एक है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा है कि एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट जज रंजना देसाई करेंगी। यह समिति UCC का मसौदा तैयार करेगी और कानून बनाने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जिसके आधार पर राज्य सरकार 45 दिनों के भीतर निर्णय लेगी।
*सिन्हा की टिप्पणियाँ और UCC पर राष्ट्रीय बहस
राष्ट्रीय स्तर पर UCC लागू करने पर बहस तेज हो रही है, शत्रुघ्न सिन्हा का बयान इस बात पर जोर देता है कि क्षेत्रीय संवेदनाओं को समझते हुए कानून को निष्पक्ष और समावेशी तरीके से लागू किया जाए। सिन्हा ने यह भी कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह प्रक्रिया सभी वर्गों और समुदायों से विचार-विमर्श के बाद ही पूरी हो।
इस प्रकार, शत्रुघ्न सिन्हा का यह बयान यूसीसी के राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने की संभावना पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है, जिसमें न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं का भी ध्यान रखना आवश्यक होगा।
यूसीसी की बहस अब केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गई है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच समझ और सहमति से जुड़ा हुआ मुद्दा है। सिन्हा के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस संवेदनशील मुद्दे पर एक समान दृष्टिकोण से पहले सभी पक्षों से विचार विमर्श करना अत्यंत आवश्यक है।