इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को 2023 में मुजफ्फरनगर के छात्र थप्पड़ कांड के पीड़ित छात्र की पूरी शिक्षा का खर्च— ट्रांसपोर्टेशन फीस—उठाने का निर्देश दिया है। यह निर्देश सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत दाखिल जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान आया।
“राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है शिक्षा का खर्च वहन करना” — सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया “हम एक बार फिर स्पष्ट करते हैं कि इस खर्च को वहन करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य की है। हालांकि राज्य चाहे तो स्कूल प्रबंधन को इस खर्च में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार चाहे तो किसी चैरिटेबल संस्था से भी सहयोग ले सकती है, लेकिन छात्र की शिक्षा में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए।
क्या है मामला?
यह जनहित याचिका अगस्त 2023 में तब दायर की गई थी, जब एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें एक सात वर्षीय मुस्लिम छात्र को उसकी शिक्षिका द्वारा थप्पड़ मारा जा रहा है और धर्म पर आपत्तिजनक टिप्पणी की जा रही है। वीडियो में शिक्षिका अन्य छात्रों से भी उस छात्र को एक-एक कर थप्पड़ मरवाती है।
घटना के सामने आने के बाद देशभर में आक्रोश और निंदा हुई थी। शिक्षिका के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी और यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक भेदभाव और शिक्षा में असहिष्णुता की प्रतीक घटना बन गया।यूपी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि छात्र की शिक्षा किसी भी प्रकार से बाधित न हो और उसे एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण में पढ़ने का अवसर मिले। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल मौखिक आश्वासन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि व्यवहारिक अमल भी ज़रूरी है।
सामाजिक जवाबदेही का मुद्दा
यह मामला सिर्फ एक छात्र की शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के शैक्षिक संस्थानों में संवेदनशीलता, समानता और धर्मनिरपेक्षता के प्रश्न को सामने लाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भविष्य में ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश गया है।