इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
महाराष्ट्र की छात्रा चैतन्या को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने फर्जी अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाणपत्र के आधार पर एमबीबीएस में प्रवेश को वैध ठहराया, लेकिन उसके पिता संजय विठलराव पालेकर पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि इस धोखाधड़ी के कारण एक योग्य आदिवासी उम्मीदवार का अवसर छिन गया।
चैतन्या का जन्म 7 अगस्त 1998 को हुआ। उनके पिता और चाचा ने 1989 में अपने जनजाति दावों की अस्वीकृति को छिपाकर 2007 में नया प्रमाणपत्र जारी कराया। चैतन्या ने 2016 में इस प्रमाणपत्र के आधार पर एमबीबीएस में प्रवेश लिया और 2021 में डिग्री पूरी की। इसके बाद उन्होंने सामान्य श्रेणी में पोस्ट ग्रेजुएट (PG) कोर्स में दाखिला लिया।
7 जुलाई 2022 को सत्यापन समिति ने आदेश दिया कि चैतन्या “मन्नेर्वारलू” जनजाति से संबंधित नहीं हैं। इसके बाद चैतन्या ने बॉम्बे हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं, ने चैतन्या की अपील को आंशिक रूप से मंजूर किया। अदालत ने चैतन्या की एमबीबीएस डिग्री और PG कोर्स को वैध ठहराया, यह कहते हुए कि यदि अपील खारिज होती तो छात्रा का पूरा करियर खतरे में पड़ जाता।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि इस धोखाधड़ी के लिए मुख्य जिम्मेदार उसके पिता हैं और उन्हें दो महीने के भीतर राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया। चैतन्या को भविष्य में कभी भी अनुसूचित जनजाति का दावा करने से रोक दिया गया।
अदालत ने मामले में न्याय और संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाए रखा। छात्रा के भविष्य को सुरक्षित रखते हुए, दोषी पिता को दंडित किया गया। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यदि सत्यापन समिति ने समय पर जांच की होती, तो यह विवाद उत्पन्न नहीं होता।