इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी के मामले में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ चल रही जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सख़्त रुख अपनाया। अदालत ने हरियाणा पुलिस की विशेष जांच टीम (SIT) की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जांच का दायरा तय FIR तक सीमित रहना चाहिए, न कि उससे बाहर जाकर बेवजह कार्रवाई करना।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की खंडपीठ ने SIT से पूछा कि आखिर क्यों वह केवल सोशल मीडिया पोस्ट की भाषा की जांच करने के बजाय प्रोफेसर के मोबाइल, लैपटॉप और अन्य डिवाइस जब्त कर रही है।
अदालत ने सख्त लहजे में कहा, “आपको यह देखना है कि पोस्ट की भाषा और उसमें प्रयुक्त शब्द कानूनन अपराध की श्रेणी में आते हैं या नहीं। इसके लिए न प्रोफेसर चाहिए, न डिक्शनरी और न ही उनके गैजेट।” सुप्रीम कोर्ट ने SIT को चार हफ्तों के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि प्रोफेसर महमूदाबाद पर मई महीने में की गई एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। उन्होंने कथित तौर पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सेना में महिला अधिकारियों की भागीदारी और उनके प्रचार को लेकर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर उन पर धार्मिक भावना भड़काने और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को मिली अंतरिम जमानत की शर्तों में भी ढील दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि उन्हें केवल ‘विवादित विषय’ पर टिप्पणी करने से रोका गया है, न कि किसी भी विषय पर। साथ ही कहा गया कि चूंकि प्रोफेसर अपने डिवाइस पहले ही जांच एजेंसी को सौंप चुके हैं, इसलिए दोबारा पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रोफेसर की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अली खान महमूदाबाद की पोस्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आती है और उसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं थी। कोर्ट ने भी माना कि SIT का काम केवल यह तय करना है कि पोस्ट में ऐसा कुछ है या नहीं जो कानूनन दंडनीय हो।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जांच एजेंसियों की सीमाओं के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी जांच को कानून के दायरे में रहकर ही संपन्न किया जाना चाहिए।