इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
पूर्वी चंपारण के तुरकौलिया में रविवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान महात्मा गांधी के प्रपौत्र और प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक तुषार गांधी को कार्यक्रम स्थल से बाहर निकलने को मजबूर होना पड़ा। यह घटना उस वक्त हुई जब कार्यक्रम के दौरान उनकी टीम के एक सदस्य द्वारा नीतीश सरकार को लेकर की गई टिप्पणी पर पंचायत मुखिया विनय कुमार साह ने कड़ा ऐतराज़ जताया और मंच पर विरोध करते हुए तुषार गांधी को सभा से बाहर जाने को कह दिया।
तुषार गांधी इन दिनों गांधी विचार यात्रा के अंतर्गत बिहार के पश्चिम चंपारण से पदयात्रा पर हैं, जो महात्मा गांधी के 1917 के सत्याग्रह से प्रेरित है। रविवार को वे तुरकौलिया पहुंचे, जहां उन्होंने गांधीजी से जुड़े ऐतिहासिक नीम के पेड़ का भ्रमण किया और पंचायत भवन में एक जनसभा को संबोधित किया। सभा के दौरान एक सहयोगी द्वारा दिए गए बयान ने विवाद को जन्म दे दिया।
मुखिया भड़के, गांधी को कहा “राजनीति से बाज़ आएं”, सभा में कथित रूप से नीतीश सरकार को बदलने की बात कही गई, जिसे मुखिया विनय कुमार साह ने राजनीतिक टिप्पणी बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने सभा में हस्तक्षेप करते हुए मंच से ही विरोध दर्ज कराया और तुषार गांधी को कार्यक्रम छोड़ने को कहा
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वहां मौजूद कई स्थानीय नागरिकों ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि विवादित बयान तुषार गांधी का नहीं, बल्कि उनके एक सहयोगी का था। बावजूद इसके, मुखिया अपने रुख पर अड़े रहे। बढ़ते विवाद को देखते हुए तुषार गांधी ने स्वयं को संयमित रखते हुए सभा बीच में ही छोड़ दे
सभा छोड़ने के बाद मीडिया से बातचीत में तुषार गांधी ने कहा “हमें बदतमीज कहा गया, अपमानित किया गया। जब अंग्रेजों का शासन था तो उन्होंने गांधी जी को रोका था, आज लोकतंत्र में हमें रोका जा रहा है। मैं डरने वाला नहीं हूं, मेरी यात्रा जारी रहेगी।”
इस घटना को लेकर क्षेत्रीय सामाजिक संगठनों और गांधीवादियों में नाराज़गी देखी जा रही है। कई बुद्धिजीवियों ने इसे गांधी विचारधारा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अपमान बताया है।
तुषार गांधी, महात्मा गांधी के पोते अरुण मणिलाल गांधी के पुत्र हैं। उनका जन्म 17 जनवरी 1960 को महाराष्ट्र के शेगांव में हुआ। वे लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी विचारधारा के प्रचारक हैं।
उन्होंने 2005 में दांडी यात्रा की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ऐतिहासिक पदयात्रा का नेतृत्व किया था। वे महात्मा गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष और लोक सेवा ट्रस्ट के प्रमुख भी हैं। साथ ही, वे 2019 से जलगांव रिसर्च फाउंडेशन से भी जुड़े हुए हैं।
जिस भूमि पर गांधीजी ने पहली बार सत्याग्रह की मशाल जलाई थी, उसी चंपारण की धरती पर उनके प्रपौत्र को इस तरह के बर्ताव का सामना करना पड़ा। यह घटना न केवल सामाजिक सहिष्णुता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप और विचारधारात्मक असहमति के बीच बढ़ती दूरी की भी प्रतीक बनकर सामने आई है!