इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश में इस वर्ष कांवड़ यात्रा मार्ग पर धार्मिक भेदभाव को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दुकानों और ढाबों पर मालिकों के नाम—और उनके माध्यम से धर्म—उजागर करने पर रोक लगाए जाने के बाद, इस बार राज्य सरकार ने एक नया तरीका निकाला है। अब दुकानों के बाहर QR कोड लगाए जा रहे हैं, जो स्कैन करने पर मालिक का नाम, लाइसेंस विवरण और संपर्क जानकारी उजागर कर देते हैं।
हालांकि, फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ने इसे “ग्राहकों की सुविधा” और “फीडबैक रजिस्ट्रेशन” के लिए बताया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड स्वीकार किया कि QR कोड स्कैन करने से दुकानदार की पहचान, और धर्म, आसानी से जानने योग्य हो जाता है,एक अधिकारी ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड पर नाम लिखने से रोका था, लेकिन QR कोड के ज़रिए हम रजिस्ट्रेशन की जानकारी दिखा रहे हैं। यह तकनीकी रूप से वैध है”
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम और धर्म प्रदर्शित करना संविधान विरोधी है, और इससे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है। अदालत ने आदेश दिया था कि सिर्फ़ “शाकाहारी” या “मांसाहारी” भोजन की स्पष्टता दी जाए, मालिक की पहचान नहीं।
FSDA के नए आदेश के तहत दुकानदारों को दुकान के बाहर QR कोड के साथ एक बोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया है, जिसमें लाइसेंस नंबर, पता और संपर्क विवरण भी दर्ज होता है। लेकिन QR कोड स्कैन करने पर मालूम होता है कि दुकान का मालिक कौन है, जिससे धर्म का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं रह जाता।
VHP व अन्य हिंदुत्व संगठनों के कार्यकर्ता इन QR कोड्स को स्कैन कर मुस्लिम दुकानों की पहचान कर रहे हैं, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में भी सामने आया है। हाल ही में एक मामले में ऐसे कार्यकर्ताओं ने ढाबे के स्टाफ से उनकी धार्मिक पहचान जानने के लिए जबरन कपड़े उतरवाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति धर्मनिरपेक्ष भारत के संविधान की भावना के विपरीत है। तकनीक का इस्तेमाल पारदर्शिता के नाम पर परोक्ष रूप से धार्मिक पहचान उजागर करने के लिए हो रहा है, जो नागरिकों के निजता के अधिकार और व्यवसाय के स्वतंत्रता के अधिकार पर सवाल खड़ा करता है।
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश में इस वर्ष कांवड़ यात्रा मार्ग पर धार्मिक भेदभाव को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दुकानों और ढाबों पर मालिकों के नाम—और उनके माध्यम से धर्म—उजागर करने पर रोक लगाए जाने के बाद, इस बार राज्य सरकार ने एक नया तरीका निकाला है। अब दुकानों के बाहर QR कोड लगाए जा रहे हैं, जो स्कैन करने पर मालिक का नाम, लाइसेंस विवरण और संपर्क जानकारी उजागर कर देते हैं।
हालांकि, फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ने इसे “ग्राहकों की सुविधा” और “फीडबैक रजिस्ट्रेशन” के लिए बताया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड स्वीकार किया कि QR कोड स्कैन करने से दुकानदार की पहचान, और धर्म, आसानी से जानने योग्य हो जाता है,एक अधिकारी ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड पर नाम लिखने से रोका था, लेकिन QR कोड के ज़रिए हम रजिस्ट्रेशन की जानकारी दिखा रहे हैं। यह तकनीकी रूप से वैध है”
जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम और धर्म प्रदर्शित करना संविधान विरोधी है, और इससे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है। अदालत ने आदेश दिया था कि सिर्फ़ “शाकाहारी” या “मांसाहारी” भोजन की स्पष्टता दी जाए, मालिक की पहचान नहीं।
FSDA के नए आदेश के तहत दुकानदारों को दुकान के बाहर QR कोड के साथ एक बोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया है, जिसमें लाइसेंस नंबर, पता और संपर्क विवरण भी दर्ज होता है। लेकिन QR कोड स्कैन करने पर मालूम होता है कि दुकान का मालिक कौन है, जिससे धर्म का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं रह जाता।
VHP व अन्य हिंदुत्व संगठनों के कार्यकर्ता इन QR कोड्स को स्कैन कर मुस्लिम दुकानों की पहचान कर रहे हैं, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में भी सामने आया है। हाल ही में एक मामले में ऐसे कार्यकर्ताओं ने ढाबे के स्टाफ से उनकी धार्मिक पहचान जानने के लिए जबरन कपड़े उतरवाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति धर्मनिरपेक्ष भारत के संविधान की भावना के विपरीत है। तकनीक का इस्तेमाल पारदर्शिता के नाम पर परोक्ष रूप से धार्मिक पहचान उजागर करने के लिए हो रहा है, जो नागरिकों के निजता के अधिकार और व्यवसाय के स्वतंत्रता के अधिकार पर सवाल खड़ा करता है।