इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने राज्य में स्थित 15 ऐतिहासिक स्थलों के नाम बदलने का फैसला किया है, जिनके नाम मुस्लिम इतिहास से जुड़े थे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने एकतरफा और सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला करार दिया है।
सरकार का दावा है कि यह बदलाव स्थानीय संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने के लिए किया गया है। लेकिन राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह फैसला ऐतिहासिक स्थलों के वास्तविक इतिहास को मिटाने और मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर धकेलने की एक सोची-समझी साजिश है।
सामाजिक संगठनों का विरोध
कई संगठनों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार, सरकार ऐतिहासिक स्थलों के नाम बदलकर वास्तविक इतिहास से छेड़छाड़ कर रही है। इतिहासकारों का मानना है कि यह फैसला सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का हिस्सा हो सकता है, जिससे समाज में विभाजन बढ़ेगा।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने इस फैसले को ‘भाजपा का चुनावी हथकंडा’ करार दिया है। उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, “सरकार को महंगाई, बेरोजगारी और विकास के मुद्दों पर काम करना चाहिए, लेकिन वह ऐतिहासिक स्थलों के नाम बदलने में व्यस्त है। यह सांप्रदायिक राजनीति का एक हिस्सा है।”
मुस्लिम समुदाय में रोष
मुस्लिम संगठनों का कहना है कि सरकार द्वारा बार-बार मुस्लिम इतिहास और विरासत पर हमले किए जा रहे हैं। “अगर नाम बदलने से इतिहास बदल सकता, तो हिटलर आज भी हीरो होता,” एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कटाक्ष किया।
क्या कहती है सरकार?
सरकार ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के लिए लिया गया है। एक भाजपा नेता ने कहा “हमारी सरकार उत्तराखंड की सनातन संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
हालांकि, इस फैसले ने राज्य में नए सामाजिक और राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। सवाल यह है कि क्या सरकार विकास कार्यों से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के फैसले ले रही है, या यह वास्तव में सांस्कृतिक विरासत को संवारने की कोशिश है?