इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा देखते ही देखते राज्य की राजनीति का केंद्र बन गई है।
राहुल गांधी इस यात्रा को सीधे तौर पर “वोट चोरी” के नैरेटिव से जोड़ रहे हैं। उनका आरोप है कि संगठित तरीके से लाखों मतदाताओं के नाम चुनाव आयोग की सूची से हटाए गए हैं और यह सब सत्ता और आयोग की मिलीभगत से हुआ है। इसी मुद्दे पर वह लगातार उन परिवारों से मिल रहे हैं जिनके नाम SIR प्रक्रिया के दौरान लिस्ट से काट दिए गए।
धार्मिक और सामाजिक जुड़ाव
यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने धार्मिक स्थलों का भी दौरा किया। औरंगाबाद के सूर्य मंदिर में पूजा की और मुंगेर की खानकाह रहमानी जाकर अमीर-ए-शरीयत वली फैसल रहमानी से मुलाक़ात की। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन कदमों से राहुल गांधी समावेशी राजनीति का संदेश देने और खासकर मुस्लिम वोट बैंक को मजबूती से साधने की कोशिश कर रहे हैं।
जनता से सीधा संवाद
यात्रा को राहुल गांधी ने मंचीय भाषण से आगे बढ़ाकर जनता के सीधे संवाद का रूप दिया है।
दशरथ मांझी के बेटे को घर की चाभी सौंपना,
कटिहार में मखाना किसानों के साथ खेतों में उतरकर बातचीत करना,
अररिया में युवाओं के साथ बाइक रैली करना—
इन पहलों से राहुल गांधी आम जनता की रोज़मर्रा की समस्याओं से जुड़ने की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन
इस यात्रा ने विपक्षी एकता को भी नया मंच दिया है। मंच पर राजद नेता तेजस्वी यादव, भाकपा-माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी राहुल के साथ नज़र आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कन्हैया कुमार, पप्पू यादव और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे नेता अलग-अलग जिलों में सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। इससे INDIA गठबंधन की एकजुट तस्वीर सामने आ रही है।
ट्रायल रन या नया प्रयोग?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह यात्रा 2025 के विधानसभा चुनाव का ट्रायल रन है। 2024 लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी जनता से दोबारा जुड़ने की कवायद कर रहे हैं। “भारत जोड़ो यात्रा” के बाद यह उनका दूसरा बड़ा जनसंपर्क अभियान है, जिसमें विपक्ष का एजेंडा भी उन्हीं के नैरेटिव के इर्द-गिर्द घूमता दिखाई दे रहा है।
चुनावी सवाल अभी बाकी
हालाँकि कई सवाल अब भी कायम हैं—
क्या ‘वोट चोरी’ का मुद्दा बिहार के मतदाताओं को उतना प्रभावित करेगा?
क्या INDIA गठबंधन सीट बंटवारे की चुनौती के बीच एकजुट रह पाएगा?
और सबसे अहम, क्या जनता इसे महज़ चुनावी स्टंट मानेगी या इसमें बदलाव की उम्मीद देखेगी?
फिलहाल इतना तय है कि राहुल गांधी की यह यात्रा बिहार की राजनीति को गरमा चुकी है। उन्होंने न सिर्फ़ विपक्षी एकता का प्रदर्शन किया है, बल्कि सियासी विमर्श का केंद्र भी बदल दिया है। अब चुनाव तक यही देखना होगा कि यह नैरेटिव वोटों में तब्दील होता है या नहीं।
(ये स्टोरी इंसाफ़ टाइम्स के कंटेंट हेड मुहम्मद फ़ैज़ान ने तैयार किया है)