इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर देशभर में जारी बहस और विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट अब 15 मई 2025 को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। खास बात यह है कि यह सुनवाई भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बी.आर.गवई की अध्यक्षता में होगी, जो 11 मई को देश के 51वें CJI के रूप में पदभार संभालेंगे।
क्या है वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025?
वक़्फ़ अधिनियम 1995 में हाल ही में किए गए संशोधनों के बाद केंद्र सरकार ने वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर नया तंत्र प्रस्तावित किया है। सरकार का दावा है कि यह संशोधन पारदर्शिता, दक्षता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया है। हालांकि, मुस्लिम संगठनों, विपक्षी दलों और विभिन्न धार्मिक संगठनों ने इस अधिनियम को धार्मिक स्वतन्त्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर ‘संवैधानिक हमला’ बताया है।
विवादित बिंदु
1.धार्मिक पहचान का क्षरण: अधिनियम में “वक़्फ़” शब्द को बदलकर “यूनिफाइड वक़्फ़ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट” (UWMEED) कर दिया गया है। आलोचकों का कहना है कि इससे वक़्फ़ की धार्मिक पहचान धुंधली होती है।
2.’वक़्फ़ बाय यूज़र’ की समाप्ति: संशोधित अधिनियम के तहत अब केवल वही संपत्तियाँ वक़्फ़ मानी जाएँगी जो विधिवत रूप से दस्तावेज़ों में पंजीकृत हैं। लंबे समय से धार्मिक प्रयोजन में प्रयुक्त लेकिन आधिकारिक रूप से दर्ज न की गई संपत्तियाँ अब वक़्फ़ नहीं मानी जाएँगी। इससे कई मस्जिदों, कब्रिस्तानों और मदरसों की स्थिति पर संकट खड़ा हो सकता है।
3.गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान: वक़्फ़ बोर्डों और राष्ट्रीय परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जिसे मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप माना जा रहा है।
4.धार्मिक पहचान की अवधि की शर्त: अधिनियम में यह भी शर्त रखी गई है कि कोई भी व्यक्ति वक़्फ़ संपत्ति तभी बना सकता है जब वह कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन कर रहा हो। यह प्रावधान नए धर्मांतरणकर्ताओं के लिए बाधा बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की अब तक की भूमिका
इस मामले में पहले हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण माँगा था और निर्देश दिया था कि अगली सुनवाई तक किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ से डिनोटिफाई न किया जाए तथा गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर भी फिलहाल रोक लगाई जाए। केंद्र ने भी कोर्ट को आश्वस्त किया कि 5 मई तक कोई नई नियुक्ति या कार्रवाई नहीं की जाएगी।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग और अवैध कब्जों को रोकने के लिए आवश्यक है। सरकार का यह भी कहना है कि वक़्फ़ बाय यूज़र की समाप्ति से पहले से पंजीकृत संपत्तियाँ प्रभावित नहीं होंगी।
क्या कहता है मुस्लिम पक्ष?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठन इस संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए इसे अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर हमला करार दे चुके हैं। संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे पूरी तरह रद्द करने की माँग की है।
आगे की राह
15 मई की सुनवाई में यह तय हो सकता है कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा जाए या नहीं। यह सुनवाई देश के धार्मिक अधिकारों, संविधान के अनुच्छेद 25 और 26, और अल्पसंख्यक अधिकारों की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकती है।