इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी को लेकर गहरी चिंता जताई है और इसे संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। मौलाना मदनी ने केंद्र सरकार से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर प्रोफेसर अली की बिना शर्त रिहाई की मांग की है।
मौलाना मदनी ने कहा कि, “सरकार की आलोचना करना या उससे असहमति जताना देशद्रोह नहीं है। यह लोकतंत्र का हिस्सा है, और नागरिकों को यह अधिकार संविधान देता है। प्रोफेसर अली खान का बयान मेरे भी संज्ञान में है, लेकिन उसमें कोई देशविरोध जैसी बात नहीं थी। इसे देशद्रोह बताकर गिरफ्तारी करना चिंताजनक है।”
उन्होंने सरकार और प्रशासन के दोहरे मापदंडों की भी आलोचना की। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने मुस्लिम महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहा, जिसे अदालत ने अनुचित ठहराया, लेकिन उस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। “वहीं दूसरी ओर एक शिक्षाविद को विचार रखने के लिए जेल में डाल दिया जाता है, यह भेदभावपूर्ण और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
मौलाना मदनी ने न्याय प्रणाली को चेताते हुए कहा कि न्याय का उद्देश्य केवल कानून लागू करना नहीं, बल्कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना भी है। उन्होंने कहा कि देश में एकता डर या चुप्पी से नहीं, बल्कि विचारों के सम्मान से बनती है।
मौलाना मदनी की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस तेज है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भारत सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और न्याय के आदर्शों के अनुरूप प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए।