इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार,उड़ीसा और झारखंड की प्रतिष्ठित धार्मिक और सामाजिक संस्था इमारत-ए-शरीया द्वारा 25 मई 2025 को ‘अरबाब-ए-हल व अक़्द’ की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में उन्हीं सम्मानित सदस्यों को आमंत्रित किया गया है जिन्हें मौलाना नज़ामुद्दीन रह. और क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी रह. के समय में अरबाब-ए-हल व अक़्द का सदस्य बनाया गया था। इसके अलावा, जिनकी मृत्यु या असमर्थता के बाद नए सदस्य नामित किए गए थे, वे भी इस बैठक में आमंत्रित हैं।
ये मीटिंग “तहरीक-ए-तहफ़्फुज़-ए-अवक़ाफ़” को मज़बूती देने के उद्देश्य से बुलाई गई है, ताकि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों के धार्मिक, संवैधानिक और क़ानूनी अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए एक ठोस रणनीति तैयार की जा सके।
लेकिन अफसोस की बात है कि इस महत्वपूर्ण प्रयास को कमजोर करने के लिए कुछ तत्व सक्रिय हो गए हैं। जानकारी के अनुसार एक खास ग्रुप ग्रुप की ओर से इमारत-ए-शरीया के फ़र्ज़ी लेटरहेड का इस्तेमाल करते हुए 22 मई को एक मनगढ़ंत बैठक की झूठी सूचना फैलाई गई है। इसका असली मकसद 25 मई की वास्तविक बैठक को विफल करना और मिल्लत में भ्रम और फूट डालना है।
जानकारों का कहना है कि ये लोग सिर्फ इमारत-ए-शरीया की साख को चोट नहीं पहुंचा रहे, बल्कि पूरी मुस्लिम क़ौम की एकता और संघर्षशीलता को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे ग़द्दारों की पहचान कर समाज में उनका बहिष्कार करना ज़रूरी हो गया है।
इमारत-ए-शरीया कोई मामूली संस्था नहीं, बल्कि यह मिल्लत की सामूहिक आवाज़, उसके अधिकारों की सुरक्षा का प्रतीक और इस्लामी सोच के साथ भारत में जीने की गारंटी है। इस संस्था को कमज़ोर करने का मतलब है पूरे समाज को असुरक्षित करना।
पाठकों को चाहिएकि वे सिर्फ़ प्रमाणिक स्रोतों पर भरोसा करें, अफवाहों से बचें और 25 मई की ऐतिहासिक बैठक की सफलता के लिए हर संभव सहयोग दें।