यूपी के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी रामायण: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में रामायण की पढ़ाई को लेकर दाखिल जनहित याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि धार्मिक ग्रंथों में निहित नैतिक शिक्षाएं बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उपयोगी हो सकती हैं। इसके साथ ही अदालत ने सरकार के इस फैसले को संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ मानने से इनकार कर दिया।

एक याचिकाकर्ता ने अदालत में जनहित याचिका दाखिल कर यूपी सरकार द्वारा स्कूल पाठ्यक्रम में रामायण शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह निर्णय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का उल्लंघन करता है और यह धार्मिक पक्षपात को बढ़ावा देता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि उसमें नैतिकता, आदर्श जीवन मूल्य, और कर्तव्य भावना की शिक्षा दी गई है, जो छात्रों के चरित्र निर्माण में सहायक हो सकती है।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने कहा, “जब तक किसी भी धार्मिक ग्रंथ का अध्ययन अनिवार्य नहीं किया जाता और वह नैतिक व शैक्षिक उद्देश्यों से किया जाता है, तब तक इसे संविधान के खिलाफ नहीं कहा जा सकता।”

यूपी सरकार की ओर से अधिवक्ता ने दलील दी कि रामायण का पाठ केवल वैकल्पिक रूप से नैतिक शिक्षा के तहत कराया जाएगा, न कि किसी विशेष धर्म के प्रचार के रूप में। छात्रों पर इसे पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

शिक्षाविदों और कानूनी विशेषज्ञों के बीच इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ इसे सांस्कृतिक शिक्षा की दिशा में एक सकारात्मक पहल मान रहे हैं, तो कुछ इसे बहुसंख्यकवाद के एजेंडे की ओर इशारा मान रहे हैं।

प्रसिद्ध शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. फैजान अहमद ने कहा, “अगर सिर्फ रामायण को शामिल किया जा रहा है और अन्य धार्मिक/सांस्कृतिक ग्रंथों की उपेक्षा की जा रही है, तो यह संतुलन के सिद्धांत के खिलाफ है।”

यह फैसला अब एक नजीर बन सकता है और अन्य राज्यों में भी धार्मिक ग्रंथों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने की बहस को हवा मिल सकती है। हालांकि यह देखना अहम होगा कि इसे लागू करने के दौरान सरकार संवैधानिक सीमाओं और विविधता के सम्मान को किस तरह बनाए रखती है।

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