फूलन देवी: ठाकुरवाद और महिला उत्पीड़न के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की जुवालाइमरान अहमद: छात्र पत्रकारिता सह जनसंचार विभाग मानू हैदराबाद August 14, 2022 by Insaaf Times Spread the love ये वो दौर था जब पुरे भारत में बड़ी जाति यानी ब्राह्मण ,भूमिहार और राजपूत का जुल्म छोटी जाति पर खूब होता था। ब्राह्मण ,भूमिहार और ठाकुर जाति के लोग छोटी जाति की महिला और लड़कियों का बलात्कार बड़ा आसानी से करते थे और ये उनके लिए बहुत आसान काम था। ये लोग गांव की छोटी जाति की महिलाओं को उठाकर ले जाते और उनके साथ कई कई दिन तक बलात्कार करते। इन जुल्म के खिलाफ कोई अपना मुंह भी नहीं खोलता था। इसी दौर एक ऐसी महिला का जन्म होता है जो अपने जीवन में विलेन से लेकर हीरो तक भूमिका में रहीं। उतर प्रदेश में एक जिला है जालौन। जिला जालौन कानपुर-झांसी रोड पर है। वैसे तो जिले का नाम ऋषि जलवान के नाम पर पड़ा था लेकिन इस जिले का दुनिया से परिचय कराया 1960 के दशक में पैदा हुई एक लड़की ने उस लड़की का नाम था फूलन 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले के गांव घूरा का पूरवा में फूलन का जन्म हुआ। परिवार काफी गरीब था जाति छोटी थी, लेकिन लड़की के तेवर बड़े थे वो किसी के सामने न झुकती थी और न किसी से दबती थी। बात 1974 की है, उस समय फूलन करीब 10 साल की थी। तब पता चला कि सगे चाचा ने दबंगई से उसके पिता की जमीन हड़प ली है। ये जानकर वो चाचा से ही भिड़ गई, जमीन पाने के लिए धरने पर बैठ गई। इसके विरोध में चचेरे भाई ने फूलन के सिर पर ईंट से हमला कर दिया। लेकिन वो हार नहीं मानी, विरोध जताती रही। लेकिन थी वो एक मासूम लड़की ही उम्र महज 10 साल, गुस्सा और तेवर बड़ों जैसे। ऐसे में घरवालों ने हाथों में बेड़ियां बांधने की सोची, लड़कियों को बांधने का समाज में सबसे प्रचलित प्रथा रही है हाथ पीले करने की। फूलन भी उसी फेहरिस्त में शामिल हो गई। 10 साल की उम्र में ही घरवालों ने जबरन शादी करा दी।वो भी उसकी उम्र से 35 से 40 साल बड़े आदमी से, न चाहते हुए भी वो बन गई बालिका वधू। थोड़ा विरोध किया, आंसू गिराए। लेकिन ससुराल तो जाना ही था। ससुराल पहुंची। न चाहते हुए भी पति से संबंध बनाने को मजबूर हुई। वो उस पति को सह नहीं पाती थी।ऊपर से घर के कामकाज का बोझ भी। वो मजबूत थी, दबंग थी लेकिन उम्र भी तो कोई चीज़ होती है। महज 12-13 साल में कितना सहती? धीरे-धीरे अब फूलन की तबीयत खराब होने लगी, इतनी खराब की उसे मायके लौटना पड़ा। लेकिन मायके वालों को फूलन का इस तरह से लौटना अच्छा नहीं लगा, इसलिए भाई ने कुछ समय बाद ही फूलन को फिर से ससुराल पहुंचा दिया। अब फूलन फिर से उसी जगह आ पहुंची, जिसे वो काले पानी की सज़ा से भी बढ़कर मानती थी। लेकिन ये सजा उसकी उस समय और बढ़ गई जब पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी रचा ली है। और फूलन को उसके पति ने धक्के मारकर बाहर निकाल दिया अब फूलन के पास कोई रास्ता भी नहीं था। इसी बीच, वो डकैतों के गैंग के संपर्क में आई, उनके साथ घूमने लगी। ये साथ उसे अच्छा लगने लगा। बंदूक चलाना भी सीखने लगी, ये भी उसे अच्छा लगने लगा। कुल मिलाकर एक तरीके से घरवालों की अनदेखी और ससुराल में तिरस्कार ने उसे डकैतों के आंगन में पहुंचाया दिया था। हालांकि, फूलन डाकुओं के संपर्क में कैसे आई इसे लेकर भी कई थ्योरी हैं। कोई कहता है कि वो अपनी मर्जी और मजबूरी में डाकुओं से जुड़ी। तो कोई कहता है कि डाकू जबरन उठा ले गए थे। अब इन दोनों बातों के कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है। लिहाजा, फूलन की आत्मकथा में लिखी उसी बात पर ही भरोसा करते हैं, जिसमें डाकुओं से संपर्क में आने के बारे में फूलन ने कहा था कि “किस्मत को शायद यही मंजूर था।”चंबल में ऐसा पहली बार हुआ था कि डकैतों के साथ कोई महिला जुड़ी थी। इसी बीच एक दिन फूलन पूरी गैंग को लेकर अपनी ससुराल पहुंचती है। अपने पति पुत्ती और उसकी दूसरी बीवी को घसीटते हुए घर से बाहर लाती है। चौराहे पर लाकर पति के शरीर में जगह-जगह चाकू घोंप कर उसे अधमरा कर देती है। फूलन ने वहां से आते वक्त ऐलान किया, “आज के बाद कोई भी बूढ़ा किसी जवान लड़की से शादी करेगा तो उसे फूलन की गोली का शिकार होना पड़ेगा।” दिन-रात साथ रहती थी हंसती-घूमती थी। फिर धीरे-धीरे वो डाकुओं के सरदार बाबू गुज्जर और उसके साथी डाकू विक्रम मल्लाह को पसंद आ गई। विक्रम मल्लाह अंदर ही अंदर बाबू गुज्जर का दुश्मन बन बैठा था। और आखिरकार ये दुश्मनी एक दिन गुस्से के रूप में बाहर आ गई। जिसका शिकार हुआ डाकुओं का सरदार बाबू गुज्जर। विक्रम ने बाबू गुज्जर को गोलियों से भून डाला। राजा को मारने वाला ही राजा बनता है। तो डाकुओं के सरदार को मारने वाला भी सरदार बन गया। और अब फूलन भी हमेशा के लिए विक्रम की हो गई। छोटी जाति की महिला के लिए बाबू गुज्जर की हत्या होना, एक गैंग को नागवार गुजरा। क्यों कि बाबू गुज्जर बड़ी जाती से था और वो गैंग था ठाकुरों का था। जिसकी कमान श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर के पास थी। दोनों इस हत्या के लिए फूलन को दोषी मानते थे। अब दोषी मान लिया तो बदला लेना तो ठाकुर गैंग की फितरत थी। वो फूलन से बदला लेने चाहते थे।श्रीराम और लालाराम, जो बड़े जाती से संबंध रखते थे यानी वो गांव के ठाकुर थे। ये ठाकुर फूलन के पति विक्रम को गोली मार देते हैं। विक्रम की गैंग के और भी लोग मारे जाते हैं और कुछ भाग जाते हैं। फूलन अकेली बचती है। श्रीराम और लालाराम जो ठाकुर थे वह उसे उठाकर अपने गांव बेहमई ले आते हैं।गांव में फूलन देवी को तीन हफ्ते तक एक कमरे में बंद रखा गया। और गांव के बड़ी जाती यानि ठाकुर जाति के लोग तीन हफ्ते तक उसके साथ लगातार बलात्कार करते रहे। एक टीवी इंटरव्यू में फूलन ने खुद बताया था की बेहमई गांव के के 30 जो बड़ी जाती से तालुक रखते थे यानि गांव के ठाकुरों ने लगातार 21 दिन तक उसके साथ बलात्कार किया । फूलन देवी बताती हैं “उस कमरे से एक व्यक्ति बाहर निकलता था तो दूसरा अंदर आ जाता था। जिसका जब भी मन करता तब आ जाता और उसकी इज़्ज़त से खेलता था।” ये सिलसिला 3 हफ्तों यानी 21 दिनों तक चलता रहा। और फूलन के साथ 30 से ज्यादा लोग लगातार बलात्कार करते रहे। इधर फूलन की गैंग के दो लोग उसकी खबर जुटाने में लगे हुए थे। श्रीराम और लालाराम से नफरत करने वाले बेहमई गांव के एक व्यक्ति ने उन दोनों से संपर्क किया और उन्हें जानकारी दी कि फूलन किस जगह पर बंद है। रात के अंधेरे में तीनों एक साथ आते हैं और फूलन को आजाद करा कर वापस बीहड़ ले जाते हैं। 7 महीने बीत चुके थे लेकिन राजपूतों ने जिस तरह से फूलन देवी का गैंगरेप किया था फूलन अपने ऊपर हुए अत्याचार और वो तीन काले हफ्ते नहीं भुला पा रही थी । एक दिन फूलन को जानकारी लगती है कि बेहमई गांव में एक राजपूत के यहां शादी है। 14 फरवरी, 1981 को फूलन अपने पूरे गैंग के साथ पुलिस की ड्रेस में बेहमई गांव पहुंचती है। उस पूरे शादी वाले घर को घेर लिया जाता है। शादी में उन लोगों को चुन-चुन कर ढूंढा जाता है जिन्होंने फूलन का बलात्कार किया था लेकिन सिर्फ दो लोग ही मिल पाते हैं। फूलन ने दो आरोपियों को पहचान लिया। उनसे सवाल पूछा, बोली- बेइज्जती करने वाले बाकी कहां हैं? दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया, उनकी खामोशी फूलन के गुस्से को बढ़ा रही थी, और फिर गुस्सा इतना बढ़ा कि वो 22 ठाकुरों को घर से बाहर निकाल ले आई। सभी को लाइन में खड़ा करा दिया। फिर घुटनों के बल बैठने को कहा और आखिर में सभी को गोलियों से भून डाला। महज कुछ मिनट में एक साथ 22 लोगों की हत्या, अपने आप में ये नरसंहार था। जिसने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिला डाला।यही वो घटना थी जिसके बाद फूलन देवी को पूरी दुनिया जान गई। तो फिर उत्तर प्रदेश और अपना देश कैसे बचे रह जाते। उस वक्त केंद्र में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। उत्तर प्रदेश राज्य में वीपी सिंह की सरकार थी, लेकिन चर्चा में आई फूलन देवी, मीडिया ने फूलन को बैंडिट क्वीन नाम दिया, और सरकार ने इसके सिर पर इनाम रख दिया। लेकिन फूलन को पकड़ना तो दूर कोई पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाई। फिर क्या था, इस मामले ने उस समय की राज्य सरकार को हिला डाला। बेहमई कांड की वजह से यूपी के मुख्यमंत्री वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन फूलन फिर भी काबू में नहीं आई। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस डाकुओं के ठिकानों पर छापेमारी करने लगी। कई छोटे-मोटे डाकुओं का एनकाउंटर भी हुआ लेकिन फूलन तक पुलिस का पहुंचना सपना ही रह गया। एक साल तक ये सिलसिला चलता रहा, आखिरकार मध्य प्रदेश सरकार ने फूलन को आत्मसमर्पण कराने की रणनीति बनाई। जिम्मेदारी भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी को सौंपी गई।तारीख 13 फरवरी साल 1983, जगह मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एमजीएस कॉलेज, यहां सुबह से देश और दुनिया की निगाहें टिकीं थीं। वजह थी खौफ का दूसरा नाम कही जाने वाली फूलन देवी का आत्मसमर्पण करना इसके बाद मध्य प्रदेश के उस वक्त के सीएम अर्जुन सिंह के सामने फूलन ने गैंग के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।फूलन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के केस चले। 11 साल जेल में रहना पड़ा जेल में रहने के दौरान उसके दो ऑपरेशन हुए। एक ऑपरेशन में उनकी बच्चेदानी को निकाल दिया जाता है। जानकार बताते हैं, “ऐसा इसलिए किया गया था ताकि फूलन देवी कभी किसी दूसरी फूलन को जन्म ना दे सके।1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। मुलायम सिंह ने एक बड़ा फैसला लिया, फूलन पर लगे सभी आरोपों को वापस ले लिया गया। फिर फूलन की 1994 में जेल से रिहाई हुई। उसे नया जीवन मिला, और नई उम्मीदें भी मिली। फिर फूलन ने उम्मेद सिंह नामक व्यक्ति से शादी कर ली। फूलन जेल से बाहर आ गई, नई शादी भी हो गई, लेकिन अब आगे क्या? फूलन को मुलायम सिंह ने नया जीवन दिया। जेल से आने के बाद समाजवादी पार्टी से जुड़ने का ऑफर भी, वर्ष 1996 में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई। 1996 में चुनाव भी लड़ा, जीत भी गई। मिर्जापुर से सांसद बन गई, अब वो बीहड़ के जंगल से निकलकर दिल्ली संसद में पहुंच गई, झाड़ी और झोपड़ी में रहने वाली फूलन अब आलीशान बंगले में रहने लगी।तारीख 25 जुलाई से साल 2001, जगह देश की राजधानी दिल्ली इस दिन फूलन के घर पर एकलव्य संगठन में शामिल होने के लिए शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति आया था, फूलन ने उसका स्वागत किया।खाने के लिए खीर मंगवाई, शेर सिंह ने खुशी-खुशी खीर खाई। अलविदा कहकर घर से बाहर निकलने लगा, उसका साथ देने के लिए फूलन भी बाहर निकलीं, घर के चौखट तक छोड़ने आई। लेकिन शेर सिंह के ज़ेहन में कुछ और था।उसने घर के गेट पर ही फूलन देवी को गोली मार दी। चौखट पर फूलन धड़ाम से गिरीं। कल तक जो शेरनी दहाड़ती थी, अब वो शांत थी। बिल्कुल ख़ामोश, फूलन की मौत पर शेर सिंह राणा ने कहा था, अब जाकर बेहमई हत्याकांड का बदला पूरा हुआ।घटना के बाद पुलिस ने शेर सिंह राणा को गिरफ्तार कर लिया। 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन फूलन देवी की सोच और हिम्मत को वो खत्म नहीं कर पाया। फूलन देवी पर ब्रिटेन में आउटलॉ Outlaw Book नाम की एक किताब प्रकाशित हुई। इस किताब में उनके जीवन के कई पहलुओं की चर्चा है। इस किताब के लेखक रॉय मॉक्सहैम Roy Moxham हैं। फूलन के जेल में रहने के दौरान ही इस लेखक ने उनसे पत्राचार किया था। फिर इंडिया आकर मुलाकात भी की थी।लेखक रॉय मॉक्सहैम ने फूलन देवी के बारे में एक मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने जिंदगी में बहुत कुछ सहा, लेकिन इसके बावजूद फूलन देवी बहुत हंसमुख थीं, वो हमेशा हंसती रहतीं थीं, मजाक करती रहतीं थीं। रॉय ने ये भी कहा था कि फूलन ने अपना बचपन काफी गरीबी में गुजारा। उनका दिल गरीबों के लिए हमेशा धड़कता था। ये भी कहा कि मुझे लगता है कि वे गलत न्यायिक प्रक्रिया का शिकार हुईं।तो इस तरह फूलन देवी 38 साल की उम्र में शेर सिंह राणा के हाथों मारीं गईं।पर इस उम्र में ही फूलन की एक विलेन से लेकर हीरो तक भूमिका में रहीं। उनकी जिंदगी पूरी एक किताब है, जिसके हर पन्नों में दुःख और दर्द है तो हिम्मत और हौसला भी है।(ये आर्टिकल इमरान अहमद ने अलकलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)