इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार की राजनीति एक बार फिर नए राजनीतिक प्रयोग की ओर बढ़ती नज़र आ रही है। राज्य में जहां महागठबंधन और एनडीए के बीच मुख्य मुकाबला तय माना जा रहा है, वहीं अब एक तीसरे मोर्चे की हलचल शुरू हो चुकी है। इस संभावित मोर्चे की पहली झलक तब सामने आई जब आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रदेश अध्यक्ष जौहर आज़ाद ने भारत आदिवासी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार गोंड, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तुरेश्वर जी, और विभिन्न ज़िलों से आए अन्य नेताओं के साथ विशेष बैठक की।
इस बैठक के बाद जौहर आज़ाद ने सोशल मीडिया पर लिखा “भारत आदिवासी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भाई राजेश कुमार गोंड जी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भाई तुरेश्वर जी और अन्य ज़िलों से आए सभी भाइयों से विशेष मुलाक़ात की और आगामी विधानसभा चुनाव पर विस्तार से चर्चा हुई।”
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह मुलाक़ात सिर्फ़ एक शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि इसमें एक वैकल्पिक राजनीतिक धारा की संभावना पर गंभीर चर्चा हुई। अगर यह मोर्चा आकार लेता है, तो यह उन वर्गों की राजनीति को मज़बूती दे सकता है जो अब तक हाशिए पर रहे हैं—जैसे दलित, आदिवासी, पिछड़े, और मुस्लिम समुदाय।
2020 के चुनाव में भी दिखा था तीसरे मोर्चे का चेहरा
ग़ौरतलब है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी दो प्रमुख गठबंधन महागठबंधन और एनडीए के अतिरिक्त दो अन्य फ्रंट्स ने खुद को तीसरे विकल्प के रूप में पेश किया था:
1.पप्पू यादव के नेतृत्व में बना गठबंधन जिसमें जन अधिकार पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (SDPI) और अन्य छोटे दल शामिल थे।
2.उपेन्द्र कुशवाहा की अगुवाई में बना दूसरा फ्रंट जिसमें AIMIM, बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अन्य पार्टियां शामिल थीं।
अब जौहर आज़ाद की पहल को एक नए राजनीतिक गठबंधन की नींव के रूप में देखा जा रहा है। यदि यह मोर्चा बनता है, तो इसमें SDPI, AIMIM, BSP और अन्य क्षेत्रीय दलों की भागीदारी की भी संभावना है।
सामाजिक न्याय और हाशिए के सवाल होंगे केंद्रीय मुद्दे
संभावित तीसरे मोर्चे का फोकस उन तबकों के मुद्दों पर रहेगा जिन्हें अक्सर मुख्यधारा की राजनीति में अनदेखा किया जाता है। इसमें सामाजिक न्याय, बहुजन प्रतिनिधित्व, अल्पसंख्यक अधिकार, आदिवासी हक और युवाओं की भागीदारी जैसे विषय प्रमुख होंगे।
बिहार की राजनीति में यह नई हलचल आने वाले विधानसभा चुनावों में दिलचस्प मोड़ ला सकती है। अगर यह मोर्चा ज़मीनी स्तर पर संगठित होकर उतरता है, तो यह सीमांचल, मगध, कोसी, और आदिवासी बहुल इलाक़ों में प्रभाव डाल सकता है और सत्ता के मौजूदा समीकरणों को चुनौती दे सकता है।