बिहार में सियासी तूफान, किसे नफा, किसे नुकसान ?

पटना(मुहम्मद फ़ैज़ान/इंसाफ़ टाइम्स)बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं. राजधानी पटना में जारी सियासी हलचल बिहार में फिर से नए सियासी फेरबदल के संकेत दे रही है. भाजपा के साथ अंदरखाने सियासी खिचड़ी पका रहे अारसीपी सिंह को जद(यू) ने आईना दिखा ही दिया. साथ ही जद(यू) ने केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में शामिल होने से इंकार करके भाजपा को अपने इरादे स्पष्ट कर दिए. वहीं कल जद यू की प्रेस कांफ्रेंस में जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने राजद के प्रतिरोध मार्च को इशारों में समर्थन देकर ये स्पष्ट कर दिया कि अब वो किसके साथ खेलने वाले हैं.इन सभी जारी राजनीतिक घटनाक्रमों पर भाजपा ने चुप्पी साध रखी है. अगर बिहार में फिर से महागठबन्धन की सरकार बनती है तो ये भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा.वहीं राजद का खेमा तमाम कयासों के बीच खामोश है. वह पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है और नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर अंदरखाने रणनीति बना रहा है.अगर बिहार में फिर से महागठबन्धन की सरकार बनती है तो इससे देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन होगा. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव दोनों समाजवादी आंदोलन से निकले हुए नेता हैं अगर ये दोनो फिर से एक साथ आते हैं तो नरेन्द्र मोदी के खिलाफ समाजवादी धड़े को एकजुट कर सकते हैं, और 2024 में भाजपा के खिलाफ एक नया समीकरण बना सकते हैं.ये दोनों मंडल आंदोलन के क्षत्रप हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के खिलाफ अगर कोई माडल कारगर है तो वो ‘मंडल माडल’ है, यानी ‘अोबीसी राजनीति’. दोनो(नीतीश-लालू) को ये कार्ड खेलना बखूबी आता है. जद(यू) और राजद दोनों ने जातिगत जनगणना का मुद्दा भी इसी रणनीति के तहत उठाया था लेकिन अब अगर दोनों एक साथ मिलकर इस मुद्दे को उठायेंगें तो ये ज़्यादा प्रभावशाली होगा.जातिय कार्ड भाजपा के लिए हमेशा से नुकसानदायक रहा है. इस लिए अगर बिहार में एनडीए टूटता है तो ये भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा. ऐसे में भाजपा अपना ट्रंप कार्ड खेल सकती है, जो वो खेलती रही है.

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