
इस समय बिहार की राजनीति में भूचाल आया हुआ है कभी भी बिहार में सत्ता पलट सकती है. आरसीपी सिंह के प्रकरण के बाद जिस तरह से जेडीयू और बीजेपी नेताओं के बीच तनातनी दिख रही है. उससे बिहार के राजनीतिक गलियारों में पूछा जाने लगा है कि क्या नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन खत्म कर सकते हैं. उनके राजद के साथ मिलकर एक बार फिर सरकार बनाने सहित कई और राजनीतिक विकल्पों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. बता दें कि सीएम नीतीश कुंमार भी कई मौकों पर बीजेपी का नाम लिए बगैर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. राजद के कई नेता भी लगातार संकेत दे रहे हैं कि नीतीश कुमार उसके खेमे में आ सकते हैं.हम आप को आज बताएंगे आखिर क्यों नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होना चाहते हैं. ये सिर्फ आरसीपी सिंह के प्रकरण का मामला नहीं है नीतीश कुमार के लिए ये फैसला आसान नहीं है, क्योंकि आरजेडी से डील करना उनके लिए सालों से कमाई हुई सुशासन बाबू की इमेज को खत्म करने जैसा है. लेकिन साल 2017 में एनडीए में वापसी करने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर आरजेडी के साथ जाने को विवश क्यों हैं. अतीत में बीजेपी नीतीश कुमार को ऐसे बहुत से ज़ख्म दे चुकी हैं. जिसको सहन कर पाना जदयू या नीतीश कुमार के लिए अब इतना आसान नहीं है. आइए जानते हैं अंदर का सच जो नीतीश कुमार को आरजेडी के साथ जाने और बीजेपी से दूर जाने के लिए के लिए विवश करने लगा है. जब 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन का साथ छोड़ कर बीजेपी के साथ दोबारा गए थे तब ऐसा लग रहा है की जदयू और बीजेपी में सब कुछ ठीक है, और इसका असर भी 2019 के लोकसभा के चुनाव में देखने को मिला. बिहार की 40 लोकसभा सीट में से 17 पर बीजेपी लड़ी और 17 पर जदयू लड़ी और 6 सीट पर लोजपा लड़ी. 17 सीटों में जदयू 16 सीट जीतने में कामयाब रही. लेकिन ठीक एक साल के बाद 2020 जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे, तब बीजेपी ने जदयू को पहला झटका अरूणाचल प्रदेश में दिया और जदयू के 7 विधायक में 6 को तोड़ कर अपने पाले में कर लिया जिसमें बीजेपी बहुत माहिर मानी जाती है. लेकिन जदयू को सब से बड़ा झटका बिहार विधानसभा चुनाव 2022 में लगा जब बीजेपी के इशारे पर लोजपा एनडीए गठबंधन से अलग होकर बीजेपी चुनाव लड़ी. लोजपा के अलग चुनाव लड़ने से सब से ज़्यादा नुकसान जदयू को हुआ. नीतीश कुमार साल 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही बीजेपी पर धोखेबाज होने का शक करने लगे हैं. नीतीश खेमा पूरी तरह से मानता है कि ” चिराग मॉडल” बीजेपी द्वारा किया गया एक प्रयोग था जो जदयू को कम सीट पर समेटकर नीतीश कुमार के कद को कमजोर करने के लिए प्रयोग किया गया था. जिस से जदयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. जिसका ज़िक्र आज खुद जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने अपने प्रेस कांफ्रेंस किया है. ललन सिंह ने कहा कि दरअसल नीतीश कुमार इस बात को लेकर बेहद खफा हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 में से एनडीए को 39 सीटें मिलती है जबकि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से जेडी(यू) 43 पर सिमट जाती है. वहीं बीजेपी 73 का आंकड़ा छूने में कामयाब हो जाती है. बहरहाल नीतीश 43 सीट मिलने के बावजूद बीजेपी के द्वारा मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन नीतीश कुमार लगातार इस सरकार में घुटन महसूस कर रहे थे. नीतीश के बेहद करीबी सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार अडवाणी जी के मार्गदर्शन मंडल में जाने के बाद भी केन्द्रीय नेता अरुण जेटली के साथ और राज्य स्तर पर सुशील मोदी के साथ डील करने में सहज थे. लेकिन नए बीजेपी में भूपेन्द्र यादव और नित्यानंद राय समेत संजय जायवाल से डील करना उनके लिए लगातार असहज सा प्रतीत होने लगा था, और मोदी हुकूमत की लाई हुई अग्निवीर योजना पर बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष समेत कई बड़े नेताओं द्वारा सीधा बिहार सरकार पर हमला कर रहे थे, और ये नीतीश कुमार पर सीधा-सीधा निशाना था जेडीयू नेताओं को नागवार गुजर रहा था. इसी साल 31 जुलाई को बीजेपी ने अपने सातों मोर्चे के नेताओं को पटना भेजकर 200 विधानसभा सीटों पर तैयारी और ज़मीनी हकीकत तलाशने की बात ने जदयू के और कान खड़े कर दिए. जेडीयू के नेता दबी जुबान में कहना शुरू कर चुके थे कि ये अटल अडवाणी वाली बीजेपी नहीं है जो सहयोगियों को सम्मान देती है. ये मोदी और शाह की बीजेपी है जो महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, झारखंड में जेएमएम को धता बताकर उसे निगलने का लगातार प्रयास कर रही है. जदयू महाराष्ट्र में होने वाली गतिविधियों से और भी ज्यादा चौकन्नी हो गई. इसलिए जद(यू) के भीतर “दूसरे चिराग मॉडल” का जिक्र होने लगा जिसका था. अब बीजेपी की नज़र बिहार की एक और क्षेत्रीय पार्टी पर थी, जो मुकेश साहनी विधानसभा चुनाव के दौरान वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने राजद पर पीठ में खंजर घोंपने का आरोप लगाकार महागठबंधन से नाता तोड़ कर एनडीए में शामिल हो गई, और मुकेश सहनी को एक MLC सीट के साथ 11 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें 4 सीट पर वीआईपी जीत दर्ज की. लेकिन इसी साल मार्च में बीजेपी ने वीआईपी के 3 विधायक को अपने पाले में कर के वीआईपी को एक बड़ा झटका दिया बीजेपी ने ये टूट जदयू के लिए चेतावनी भी भी थी भविष्य के लिए।अब बीजेपी की नज़र आरसीपी सिंह के माध्यम से जदयू पर थी. आरसीपी सिंह मोदी सरकार में एकलौते मंत्री थे जदयू कोटे से. दरअसल पार्टी में आरसीपी सिंह महाराष्ट्र की तर्ज पर तोड़-फोड़ कर सकते थे, जिस की खबर नीतीश कुमार लग गई थी. आरसीपी सिंह द्वारा भीतरघात करने का डर जदयू को था. आरसीपी सिंह को विभिषण मानकर जद(यू) काम करना शुरू कर चुकी थी. जदयू को पूरा भरोसा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव तक बीजेपी को नहीं घेरा गया तो बिहार में जदयू का हश्र साल 2025 में साल 2020 से भी ज्यादा खराब होने वाला है. जदयूअपने राजनीतिक वजूद को बचाने की फिराक में है और बीजेपी अपनी योजना के मुताबिक साल 2025 में सरकार न बना सके इसके लिए आरजेडी के साथ जाना ही उसे एकमात्र विकल्प नजर आने लगा है. लेकिन आज की बीजेपी के साथ बने रहने में नीतीश असहज भी हैं और राजनीतिक वजूद को लेकर असमंजस में भी हैं, और नीतीश कुमार की जो इमेज है पुरे देश में सेकूलर और पिछड़ो की आवाज़ की भी है और वो अपनी इस साख से समझौता नहीं करना चाहते हैं. क्योंकि नीतीश कुमार और जदयू को ये लग रहा है की मोदी और शाह की बीजेपी अपने सहयोगी को निगल लेने में पूरी तरह आमादा है.(इमरान अहमद ने ये आर्टिकल कलाम रीसर्च फाउंडेशन के लिए लिखा है)