इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को नया मुख्य न्यायाधीश मिल गया है। जस्टिस बी. आर. गवई ने आज सुबह 10 बजे भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली, जो 13 मई को सेवानिवृत्त हुए।
जस्टिस गवई न सिर्फ दलित समुदाय से आने वाले देश के दूसरे CJI हैं, बल्कि वे पहले बौद्ध हैं जिन्होंने देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी पर आसीन होने का गौरव प्राप्त किया है। इससे पहले के. जी. बालकृष्णन 2007 से 2010 तक पहले दलित CJI के रूप में कार्यरत रहे थे।
छह महीने का कार्यकाल
जस्टिस गवई का कार्यकाल हालांकि छोटा होगा। वे नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे, लेकिन यह कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के समावेशी भविष्य की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
अंबेडकरवादी विरासत और संघर्ष से सफलता तक
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने शुरुआत में आर्किटेक्ट बनने का सपना देखा था, लेकिन अपने पिता की इच्छा पर कानून की पढ़ाई को अपनाया। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता थे, जिन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की थी। वे बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल और सांसद भी रह चुके हैं।
पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत की शुरुआत की और 2005 में बॉम्बे हाईकोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने। 2019 में वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए और अब वे देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन हुए हैं।
समावेशी न्यायपालिका की ओर कदम
जस्टिस गवई की नियुक्ति न सिर्फ न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है, बल्कि यह संकेत भी है कि भारत का संविधानिक ढांचा अब वंचित समुदायों की भागीदारी को भी महत्व दे रहा है।
जस्टिस बी. आर. गवई का CJI बनना न्यायपालिका के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह न सिर्फ दलित और बौद्ध समाज के लिए गौरव का विषय है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समावेशिता की दिशा में भी एक प्रेरक संकेत है।