इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के पलक्कड़ में आरएसएस नेता श्रीनिवासन की हत्या से जुड़े मामले में तीन पीएफआई कार्यकर्ताओं को जमानत दे दी है। कोर्ट ने साफ किया कि ट्रायल में हो रही देरी के लिए आरोपी ज़िम्मेदार नहीं हैं क्योंकि ट्रायल खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक दिया गया था।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में ट्रायल जल्द शुरू होने की संभावना नहीं है और आरोपियों के खिलाफ गंभीर पूर्ववृत्त भी नहीं हैं। ऐसे में उन्हें कड़ी शर्तों के साथ जमानत दी जा रही है।
इस मामले में आरोपी सद्दाम हुसैन, अशरफ मौलवी सहित छह लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इनमें से तीन को जमानत मिली है जबकि बाकी की सुनवाई अब 21 मई को होगी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजा ठाकरे ने आरोपियों की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि ये केवल हत्या का मामला नहीं बल्कि “इंडिया 2047” एजेंडे की साजिश का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि सद्दाम हुसैन एक मस्जिद के इमाम हैं जहां पीएफआई के सदस्यों को ट्रेनिंग दी जाती थी और उन्होंने साजिश की बैठकों में भी हिस्सा लिया।
कोर्ट ने जब यह पूछा कि क्या आरोपियों ने हमले में भाग लिया था, तो ASG ने कहा कि उनका मकसद 24 घंटे में किसी भी उपलब्ध हिंदू को निशाना बनाना था।
कोर्ट ने कहा कि मई 2024 में खुद सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रायल पर रोक लगाई गई थी, ऐसे में देरी का कारण आरोपी नहीं हो सकते। जस्टिस ओका ने कहा, “यह तथ्य आरोपियों के खिलाफ नहीं जा सकता क्योंकि ट्रायल पर रोक इसी कोर्ट ने लगाई थी।”
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी माना कि मामले में 400 से अधिक गवाहों की जांच होनी है और ट्रायल जल्दी शुरू होने की कोई संभावना नहीं है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर 2024 को केरल हाईकोर्ट द्वारा 17 आरोपियों को सामूहिक रूप से ज़मानत देने को गलत करार दिया था और कहा था कि अलग-अलग भूमिका का विश्लेषण किए बिना ऐसा फैसला नहीं होना चाहिए था।
यह मामला UAPA, IPC और धार्मिक संस्थानों के दुरुपयोग की रोकथाम अधिनियम जैसी धाराओं के तहत दर्ज है।