इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने हाल ही में राज्यों द्वारा आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इस प्रकार की कार्रवाइयों को संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह ‘संविधान पर बुलडोजर चलाने’ के समान है।
जस्टिस भुइयां की टिप्पणी
पुणे के भारती विद्यापीठ न्यू लॉ कॉलेज में एक कार्यक्रम के दौरान, जस्टिस भुइयां ने कहा कि राज्य के अधिकारियों द्वारा आरोपी व्यक्तियों के मकानों को बुलडोजर से गिराना और फिर ढांचों को अवैध बताकर कार्रवाई का बचाव करना काफी परेशान करने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई कानून के शासन की अवधारणा को नकारती है।
परिवार के अन्य सदस्यों का क्या दोष?
जस्टिस भुइयां ने इस बात पर भी जोर दिया कि आरोपी के घर में उसके परिवार के अन्य सदस्य भी रहते हैं, जिनका किसी अपराध से कोई संबंध नहीं होता। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे निर्दोष लोगों को बेघर करना कहां तक उचित है।
न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता
अपने संबोधन में, जस्टिस भुइयां ने न्यायपालिका में सुधार की गुंजाइश पर भी बल दिया। उन्होंने आत्मचिंतन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय न्यायपालिका में सुधार की पर्याप्त संभावनाएं हैं।
सुप्रीम कोर्ट का पूर्व निर्णय
यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस प्रकार की कार्रवाइयों को असंवैधानिक करार दे चुका है। पिछले साल नवंबर में, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा था कि घर सबका सपना होता है, यह बरसों का संघर्ष और सम्मान की निशानी होती है। यदि कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, तो उसकी संपत्ति को गिराना पूरी तरह से कानून के खिलाफ है।
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की यह टिप्पणी राज्यों द्वारा कानून के शासन का पालन करने और संविधान के सिद्धांतों का सम्मान करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के संपत्तियों को ध्वस्त करना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह निर्दोष नागरिकों के अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।