इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के स्योहारा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय “साहनपुर द्वितीय” की प्रधान शिक्षिका रफत खान को निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई उस समय हुई जब सोशल मीडिया पर स्कूल की एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें स्कूल के बोर्ड पर केवल उर्दू में नाम लिखा हुआ दिखाया गया था।
हालांकि, बाद में सामने आए वीडियो और अन्य तस्वीरों से स्पष्ट हुआ कि स्कूल के बोर्ड पर नाम हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिखा गया था। लेकिन इस शुरुआती गुमराह करने वाली तस्वीर ने सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा कर दिया, जिसके बाद प्रशासन ने रफत खान को निलंबित कर दिया।
इस तस्वीर के वायरल होने के बाद कई सोशल मीडिया यूजर्स ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रशासन ने हिंदी को नजरअंदाज किया और केवल उर्दू को प्राथमिकता दी। इससे एक सांप्रदायिक बहस छिड़ गई।
कुछ लोगों ने शिक्षिका रफत खान पर धार्मिक एजेंडा चलाने का आरोप भी लगाया, जिससे विवाद और बढ़ गया।
बिजनौर जिला के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) योगेंद्र कुमार ने मामले की जांच के बाद रफत खान को निलंबित कर दिया।
उन्होंने कहा, “स्कूल बोर्ड पर उर्दू में नाम लिखे जाने को लेकर विवाद हुआ है, इसलिए स्थिति को नियंत्रित करने के लिए शिक्षिका को निलंबित किया गया है।”
रफत खान के निलंबन के खिलाफ कई शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और उर्दू भाषा समर्थकों ने आवाज उठाई। उनका कहना है कि उर्दू भी संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषा है और स्कूलों में इसका उपयोग गलत नहीं है।
वहीं कुछ हिंदी समर्थकों और राजनीतिक दलों ने कहा कि सरकारी स्कूलों में हिंदी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और केवल उर्दू को महत्व देना उचित नहीं।
शिक्षा विशेषज्ञों और भाषाविदों का मानना है कि भारत एक बहुभाषी देश है, जहां विभिन्न भाषाओं का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। स्कूलों में हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का होना शिक्षा के लिए लाभदायक है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि सोशल मीडिया पर बिना तथ्य जाँचे जानकारी फैलाना खतरनाक है और इससे लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है।
यह मामला दर्शाता है कि बिना पूरी जांच के सोशल मीडिया पर अधूरी जानकारी फैलाने से सामाजिक तनाव उत्पन्न होता है, जो समाज की एकजुटता के लिए हानिकारक है।
इसलिए सभी को जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए और बिना प्रमाण के किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।