इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश पुलिस का दोहरा रवैया एक बार फिर उजागर हुआ है। हाल ही में संभल के सीओ अनुज चौधरी ने होली और जुमे की नमाज को लेकर टिप्पणी की थी कि “होली साल में एक बार आती है, जिन्हें परहेज हो वे घर में रहें।”।इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुजफ्फरनगर के शाहपुर थाना क्षेत्र के कमालपुर निवासी आबाद ने इसी तर्ज पर सोशल मीडिया पर लिखा “बकरा ईद साल में एक बार आती है। जिन्हें लगता है कि मांस और खून देखने से धर्म भ्रष्ट होता है, वे घरों से बाहर न निकलें।”
आबाद की यह पोस्ट वायरल होते ही यूपी पुलिस हरकत में आ गई और उसे गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस ने जारी किया माफी मांगते हुए वीडियो
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आबाद का एक वीडियो जारी किया, जिसमें वह लॉकअप में हाथ जोड़कर माफी मांगते नजर आ रहा है। वीडियो में उसने कहा “मैं कमालपुर गांव का रहने वाला हूं। मैंने जो सीओ साहब के ऊपर टिप्पणी की है, उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। यह गलती मुझसे दोबारा नहीं होगी।”
यूपी पुलिस का दोहरा रवैया क्यों?
इस मामले ने यूपी पुलिस के दोहरे मापदंड पर सवाल खड़े कर दिए हैं!सीओ अनुज चौधरी ने होली पर टिप्पणी की, तो पुलिस ने उनके बयान को सही ठहराया। लेकिन जब आबाद ने उसी भाषा में बकरीद पर प्रतिक्रिया दी, तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इस कार्रवाई से यह स्पष्ट हो गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस एकतरफा कार्रवाई कर रही है। एक समुदाय से जुड़े व्यक्ति की विवादित टिप्पणी पर कोई कार्रवाई नहीं, जबकि उसी तर्ज पर जवाब देने वाले को गिरफ्तार कर लिया गया।
विपक्ष ने की आलोचना
विपक्षी दलों ने इस घटना को “पुलिस की सांप्रदायिक मानसिकता” करार दिया। लोगों ने कहा “यह यूपी पुलिस का दोहरा रवैया दर्शाता है। यदि पुलिस निष्पक्ष होती, तो सीओ अनुज चौधरी के खिलाफ भी कार्रवाई होती।”
यूपी पुलिस की इस कार्रवाई ने लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या पुलिस सिर्फ एकतरफा कार्रवाई करने के लिए बनी है? या फिर कानून सबके लिए बराबर है? यह घटना बताती है कि अगर कोई सत्ता के खिलाफ बोले, तो उसे कुचल दिया जाता है, लेकिन सत्ता के पक्ष में बोले तो कोई कार्रवाई नहीं होती।